chanakya neeti: आचार्य चाणक्य कहते हैं कि यदि कोई रोगी-बेचैन, तृषा पीड़ित या क्षुधाग्रस्त है तो उसे स्नान, सन्ध्योपासन से पूर्व औषध, दुग्ध, जल तथा फल आदि के सेवन करने की मनाही नहीं है।
इनके सेवन के उपरान्त भी यदि वह स्नानादि नहीं करता है तो वह पापकर्म का भागी नहीं। हमारे शास्त्र भी दुःखी प्राणी को इस प्रकार सन्ध्योपासन की सुविधा प्रदान करते मन का संयम अर्थात् शान्ति और स्थिर भाव के समान कोई दूसरा तप नहीं।
सन्तोष जैसा कोई सुख नहीं, तृष्णा जैसा दुःख देने वाला और कोई भयंकर रोग नहीं तथा दया जैसा स्वच्छ और अच्छा दूसरा कोई धर्म नहीं। (chanakya neeti) अतः सुख के इच्छुक व्यक्ति को तृष्णा से बचना चाहिए तथा सफलतम् जीवन में शान्ति, सन्तोष और दया को अपनाना चाहिए। इसी में महानता है।
यदि जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना चाहते हो तो सर्वप्रथम काम-क्रोधादि विषयों को विष समान घातक और हानिकारक समझकर तत्काल छोड़ दो तथा दूसरे के दोषों की उपेक्षा और उनके द्वारा किये गये अपकार को सहन करते हुए सरलता, छल, कपट को छोड़कर मन, वचन तथा कर्म से एकरूप होना, दूसरों के दुःखों को दूर करने की चेष्टा करना ।
तथा पवित्रता (chanakya neeti) किसी का भी अहित-चिन्तन न करना आदि गुणों को अमृत के समान उपयोगी मानकर इन्हें ग्रहण करो। अर्थात् विषयों के त्याग और सहिष्णुता, सरलता, दयालुता तथा पवित्रता आदि गुणों को अपनाने से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। मानव को दुर्गुणों का परित्याग करके गुणों, सहनशीलता, दया, क्षमा, व शुद्धि आदि को अपनाना चाहिए।
ईश्वर ने सोने में सुगन्ध नहीं डाली, गन्ने में फल नहीं लगाये, चन्दन के वृक्ष को फूलों से नहीं सजाया, ब्राह्मण को धन-सम्पत्ति नहीं दी, राजा को दीर्घायु नहीं बनाया। उसके इस कार्य में छुपा रहस्य यह है कि इन सब चीजों के अभाव में भी ये पदार्थ या ये मनुष्य पर्याप्त यशस्वी और उपयोगी होते हैं।
इससे अधिक गुणकारी होते तो उनका अभिमान बहुत बढ़ जाता और उनका अभिमान ही उनके पतन का कारण होता। (chanakya neeti) इसीलिए उनके विनयशील बने रहने के लिए यह अभाव अत्यावश्यक था।
सभी औषधियों में रसायन गिलोय सबसे अच्छा है, सभी सुखों में सबसे श्रेष्ठ सुख भोजन पाना है, ज्ञानेन्द्रियों में आंख प्रधान है, शरीर के सभी अंगों में सिर सर्वश्रेष्ठ होता है।
शिरोभाग में ही समस्त ज्ञानेन्द्रिय होती हैं। आयुर्वेद में गिलोय रसायन सभी रोगों को जड़ से समाप्त करने वाली औषधि होने से सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वह अमृत तुल्य होती है। भोजन के बिना मनुष्य का पेट नहीं भरता और जीवन नहीं चलता।
इसीलिए भोजन ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आंखों के बिना संसार अन्धकारपूर्ण है और दूसरी सभी इन्द्रियों निष्फल हैं, इसी प्रकार चिन्तन का कार्य करने वाला और दूसरे अंगों को यथोचित करने का निर्देश देने वाला सिर शरीर के दूसरे सभी अंगों से सर्वश्रेष्ठ होता है।