chanakya neeti: महान् पुरूष अति परोपकारी होते हैं। ऐसी पुण्यात्माओं का भोग करने योग्य धन सदा निर्धनों को दान देने के लिए ही होता है। वे कभी भी उसका संचय नहीं करते, क्योंकि दान की वजह से दानवीर कर्ण, विक्रमादित्य और महाराज बलि की कीर्ति आज तक अक्षुण्य है।
इसके विपरीत मधु का संचय करने वाली मधुमक्खियों का संचित मधु (शहद) जब किसी कारण से नष्ट हो जाता है या मधु का व्यापार करने वाले लोग ले आते हैं तो वे दुखी होकर स्वयं से कहती हैं कि बूंद-बूंद कर मेहनत से जोड़ा गया हमारा सारा मधु नष्ट हो गया।
हमने न तो स्वयं ही इसका उपयोग किया और न ही दूसरे को दान में दिया। (chanakya neeti) इसी पश्चाताप के कारण मधुमक्खियां अपने छत्ते के रूप में मेहनत से संचित किये गये श्रम को सर्वथा निरर्थक जाते देखकर ग्लानि से प्राण त्याग देती हैं।
कहने का अभिप्राय (chanakya neeti) यह है कि एक ओर तो संग्रह का आदर्श मधुमक्खियां हैं जिन्हें पश्चाताप करना पड़ता है और दूसरी ओर दान के आदर्श स्तम्भ बलि, दानी कर्ण और महाराजा विक्रमादित्य हैं जिनकी कीर्ति आज भी अमर है।
जब बुद्धिमान व्यक्ति को स्वयं निर्णय करना है कि खाद्य-पदार्थों, रूपये-पैसे, धन-दौलत का संचय उचित है अथवा उसको दान करना।