chanakya neeti: कर्म करने और फल भोगने में आत्मा प्रायः एकाकी होती है, किन्तु इसके अपवाद भी हैं। जैसे सन्तान द्वारा किये गये अपराध का फल माता-पिता को नैतिक दृष्टि में भोगना पड़ता है।
ऐसे ही प्रजा द्वारा किये गये दुष्कर्मों का फल (chanakya neeti) राजा को भुगतना पड़ता है। पत्नी द्वारा किये गये अविवेक पूर्ण कार्यों का दण्ड पति को भुगतना पड़ता है और शिष्य की मूर्खता से उसके गुरू को अपमानित होना (दण्ड भोगना) पड़ता है।
इस प्रकार राजा, पुरोहित, पति, गुरू का कर्तव्य क्रमशः प्रजा, राजा, पत्नी और शिष्य को दृढ़ता से सदाचरण में प्रवृत्त करना है। इसी में उक्त चारों का हित है।