chanakya neeti: देव-मन्दिरों (देवस्थल) के लिए निर्धारित भूमि, रलकोष यानी रूपया पैसा व गुरूओं की भूमि, धन-सम्पत्ति, आभूषण, रत्न आदि को जो ब्राह्मण धोखे से या अपने कपटी व्यवहार के कारण हड़प लेता है, वह ब्राह्मण न होकर चाण्डाल ही कहलाता है।
इसी प्रकार जो ब्राह्मण पर स्त्री के सम्पर्क में जाता है अथवा दूसरों की स्त्री पर बुरी तरह नजर रखता है, वह ब्राह्मण होकर भी चाण्डाल के समान ही है।
अतः ब्राह्मण को देवस्थल व अपने गुरूओं के लिए निर्धारित भूमि, धन-दौलत, आभूषण, रत्न आदि से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। (chanakya neeti) ऐसे ही दूसरों की स्त्री पर बुरी नजर नहीं रखनी चाहिए। जो ब्राह्मण ऐसा करता है, वह ब्राह्मण कहलाने के योग्य नहीं रहता।
उसे चाण्डाल ही कहा जा सकता है। परमपिता परमात्मा के लिखे को कोई नहीं काट सकता, विधाता के विधान को कोई नहीं बदल सकता, जिस प्रकार बसन्तऋतु के आने पर सभी वृक्षों पर हरियाली आ जाती है, यदि उस ऋतु में भी करील के वृक्ष पर पत्ते नहीं उगते तो इसमें बसन्त का क्या दोष?
chanakya neeti: उल्लू को दिन में दिखाई न देने की प्रक्रिया में सूरज का क्या दोष? पानी-पानी रटने वाले पपीहे के मुंह में बारिश की बूंदें नहीं गिरती तो इसमें बादलों का क्या दोष? यह सब तो विधाता द्वारा रचा गया विधान है। इसमें कोई दोषनहीं।
कहने का अर्थ यह है कि भाग्य ही प्रबल है और हमें या प्रत्येक जड़-चेतन को भाग्य का लिखा ही मिलता है। उसमें कोई भी घटा-बढ़ा नहीं सकता।
अपना जीवन शान्तिपूर्वक बिताने के लिए हर मनुष्य को धर्म-कर्म का अनुष्ठान करते रहना चाहिए। वह घर मुर्दाघर के समान है जहां धर्म-कर्म नहीं होता। जिस घर में ब्राह्मण के पैर नहीं धुलवायें जाते, जहां वेद-शास्त्रों का उच्चारण नहीं होता, जहां यज्ञादि-हवन द्वारा देवताओं का पूजन नहीं होता, ऐसे घर, घर न रहकर श्मशान के समान हो जाते हैं।
कहने का अर्थ यह है कि हर मनुष्य को अपने घर में, ब्राह्मणों को भोजन, हवन-यज्ञ, कथा (वेद-शास्त्रों का पाठ) आदि कराते रहने से ही कल्याण सम्भव है। धर्म कार्य से रहित घर श्मशानतुल्य ही माना जाता है।