chanakya neeti: हर मनुष्य अपने पूर्वजन्म के पापों के फलस्वरूप ही दरिद्रता, मानसिक कष्ट, दुःख रोग, बन्धन (जेल, हथकड़ी) तथा आपत्ति (स्त्री, पुत्रादि की मृत्यु, धन का नाश, मुकदमा, सार्वजनिक अपमान आदि) व अन्य व्यसनों के जंजाल में फंसता है।
ये कष्ट उसे अकारण नहीं उठाने पड़ते। वस्तुतः ये सब उसके किए गये अधर्म रूपी वृक्ष ही फल होते हैं। कहने का अभिप्रायः यह है कि मनुष्य द्वारा किये गये बुरे कर्मों का फल तो बुरा ही होता है।
अच्छे फल अर्थात् सुख, आनन्द, वैभव व यश की प्राप्ति के लिए सभी मनुष्यों को अच्छे कर्म करने चाहिए। आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) कहते हैं कि मानव जन्म दुर्लभ है, अपने पूर्वजन्म के संचित पुण्य कर्मों के फलस्वरूप ही आत्मा को मानव जन्म प्राप्त होता है।
धन, मित्र, भू-सम्पत्ति तो उसे बार-बार मिल जाते हैं। लेकिन मानव जन्म कि मनुष्य को यह मानकर जीवन व्यतीत बार-बार नहीं मिल पाता। इसका सदुपयोग करना चाहिए।
कहने का अभिप्राय यह करना चाहिए कि धन, मित्र, स्त्री, भू-सम्पत्ति आदि मनुष्य के लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त स्वादिष्ट फल हैं, मनुष्य को इनके लिए नहीं, इस मानव जीवन को सफल बनाने के लिए सद्कर्म करने चाहिए।