chanakya neeti: हर प्राणी की आत्मा, जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है-प्राणी स्वयं ही करता है, और उसका फल भोगता है।
स्वयं सब योनियों में भटकता है और यदि सौभाग्य (chanakya neeti) से उसके ज्ञान चक्षु खुल जायें तो अपने ही पुरूषार्थ से अपने पागलपन के दौरे से उबरकर विवेक के पथ पर आ जाता है, मगर यह भी वह स्वयं की त्याग तपस्या से कर सकता है।
जीवकर्म (chanakya neeti) करने में पूर्ण स्वतन्त्र होते हुए भी फल भोगने में परतन्त्र है, जीव चाहे तो अशुभ कर्मों को करके स्वयं को संसार के बन्धन में बांधे और चाहे तो शुद्ध पवित्र आचरण करके मुक्त कर ले। इस प्रकार कर्मानुसार जीव की उन्नति-अवनति में उसका अपना ही साथ होता है।