chanakya neeti: इस संसार में सच्चे तत्वज्ञान का उपदेश देने वाले गुरू की जो शिष्य वन्दना नहीं करता, उसके प्रति सम्मान भाव प्रदर्शित नहीं करता, ऐसा कृतघ्न व्यक्ति सौ बार कुत्ते की योनि में जन्म लेने के पश्चात् चाण्डाल की योनि में उत्पन्न होता है।
अभिप्राय यह है कि जिस किसी से जितना भी ज्ञान मिले उसे प्राप्त कर लेना चाहिए और बदले में आभार प्रकट करना चाहिए। ज्ञानदाता गुरू (chanakya neeti) की निन्दा सुननी भी नहीं चाहिए। ज्ञान देने वाले का अपमान करने वाला मानव कभी भी सुखी जीवन नहीं जी सकता। उसका परलोक भी कष्टदायक होता है।
इस पृथ्वी पर जल, अन्न और मधुर वाणी नामक तीन पदार्थ ही मूल्यवान कहलाने के अधिकारी हैं। (chanakya neeti) सामान्यतया इस जगत् में मनुष्य पत्थर के टुकड़ों (हीरा, पन्ना, मोती, माणिक) को ही अमूल्य रत्न कहते हैं। यह उनकी अज्ञानता का लक्षण है।
कहने का अभिप्राय यह है कि बहुमूल्य रत्न कहे जाने वाले पत्थर के टुकड़ों की अपेक्षा अन्न और मधुर वाणी की उपयोगिता अधिक होती है।