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chanakya neeti: मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि पर दया आती है..

chanakya neeti, pity the wisdom of a foolish person,

chanakya neeti

chanakya neeti: आकाश में बातचीत भी सुविधापूर्वक नहीं हो सकती, वहां सन्देशवाहक का आना-जाना भी असम्भव बात है, जिससे कि बातचीत करके वहां के रहस्य को जाना जा सके। अन्तरिक्ष के कार्य-कलाप के विषय में ज्ञान पाना साधारण मनुष्य के लिए कठिन ही है।

फिर भी कुछ विद्वानों (खगोलशास्त्री) ने सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण के कारण का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। ऐसे विद्वान ही प्रतिभाशाली होते हैं। (chanakya neeti) उन्हें दिव्यदृष्टि वाले विद्वान भला कैसे न माना जाये? पृथ्वी पर रहते हुए आकाश के रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करना यानी वहां के रहस्यों (ग्रह-नक्षत्रों) की जानकारी देना विद्वता का ही सबूत है।

जिस प्रकार विषहीन सर्प किसी को डसकर हानि नहीं पहुंचा सकता, उसी प्रकार जिस किसी ब्राह्मण ने अर्थोपार्जन के लिए वेदाध्ययन किया है, वह कोई भी उपयोगी कार्य नहीं कर सकता। उसका वेदों का किया गया अध्ययन व्यर्थ हो जाता है।

क्योंकि वेदाध्ययन (chanakya neeti) का सम्बन्ध अर्थोपार्जन से नहीं है, और जो विद्वान ब्राह्मण वृत्ति के लोग असंस्कारी, अनपढ़, शूद्र जाति के साथ भोजन करते हैं, उन्हें भी समाज में यश नहीं मिल पाता है। न ही उनमें ब्रह्मतेज रहता है और न ही उनके शाप-वरदान में शक्ति रह पाती है।

कहने का अभिप्राय यह है कि अपनी विद्वता को बनाये रखने के लिए किसी भी ब्राह्मण को न तो अपना ज्ञान बेचना चाहिए, और न ही किसी शूद्र जाति के हाथ का भोजन ग्रहण करना चाहिए। हर कार्य जो भी हो, यथा समय करने से ही मर्यादा की रक्षा हो सकती है।

लेकिन यथासमय करने के लिए बुद्धि और संयम चाहिये। ऐसे मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि पर दया आती है जो प्रातःकाल से ही जुआ खेलने लगे, दोपहर को सहवास के लिए लालायित हो, ऐसे मूर्ख व्यक्ति की रातें चोरी करते ही व्यतीत होती हैं।

बुद्धिमान प्राणी (chanakya neeti) प्रातःकाल महाभारत, मध्याह्र, रामायण और रात्रि में श्रीमद्भागवत् पुराण के अध्ययन-श्रवण से अपने समय को सार्थक करते हैं। महाभारत का मुख्य प्रसंग द्यूत है। रामायण का सीताहरण तथा श्रीमद्भागवत् पुराण का मुख्य प्रसंग बाल और किशोर भगवान् श्रीकृष्ण की माखन चोरी और गोपियों के वस्त्र चुराने के प्रसंग है।

अतः द्यूत से महाभारत, स्त्री प्रसंग से रामायण और चोर प्रसंग से श्रीमद्भागवत् का अर्थ लिया गया है। मनुष्य का भाग्य क्षण भर में पूर्णतः अभावग्रस्त व्यक्ति को राजा, राजा को गरीब, दाने-दाने को मोहताज, अर्थात् धनी को निर्धन व निर्धन को धनी बना देता है। भाग्य का कुछ भरोसा नहीं कि वह पल भर में हमारे साथ क्या खिलवाड़ करे। उसकी लीला अपरम्पार है।

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