chanakya neeti: संसार में किसी भी मनुष्य को मनचाहा सुख प्राप्त नहीं होता। सामान्यतः सुख-दुःख की प्राप्ति मनुष्य के हाथ में न होकर ईश्वर के अधीन है। इसीलिए जो मिल रहा है उसी पर सन्तोष करके अपने ऊपर संयम करना चाहिए।
क्योंकि सन्तोष सुख का मूल और असन्तोष दुःख का कारण है। अधिक सुख की चाह से मनुष्य को स्वयं को दुखी नहीं करना चाहिए।
अभिप्राय (chanakya neeti) यह है कि सभी मनोरथ किसी भी व्यक्ति के सिद्ध नहीं हो सकते, क्योंकि सभी कुछ भाग्याधीन है। जो हमारे भाग्य में लिखा है वह अवश्यम्भावी है। इसलिए अधिक की चाह निरर्थक है।
जिस तरह से बछड़ा हजारों पशुओं के बीच खड़ी अपनी माता को तलाशकर, तत्काल उसी के पास पहुंचकर उसके स्तनों से दुग्धपान करने लगता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य का कर्म भी फल के लिए कर्ता को तलाश लेता है।
अभिप्राय यह है कि कोई भी मनुष्य (chanakya neeti) अपने द्वारा किये गये फल भोगने से बच नहीं सकता। जो जैसे कर्म करता है वैसे ही फल भोगना ही नियति है।