chanakya neeti: जो भलाई करता है उसके साथ भलाई करनी चाहिए
chanakya neeti: उस धन-सम्पत्ति का कोई लाभ नहीं है, जो कुलवधु के समान केवल स्वामी के अपने ही उपभोग में आती है। लक्ष्मी तो वही उत्तम है, जो नगरवधु के समान न केवल सभी नगरवासियों के उपभोग में आये, अपितु राहगीरों का भी हित करे, अर्थात् धन-सम्पत्ति, वैभव की दूसरों के काम आने में ही सार्थकता है।
अर्थ यह है कि वैभवशाली व्यक्ति को हर किसी की सहायता करते हुये अपने धन-सम्पत्ति की सार्थकता बनाये रखनी चाहिए। खाने-पीने की स्वादिष्ट चीजों, धन-सम्पत्ति जीवन और सौन्दर्यमयी नारी से न तो आज तक कोई तृप्त हुआ है, न होगा और ही हो रहा है।
भूतकाल में भी सभी प्राणी (chanakya neeti) इन विषयों भोगों से अतृप्त होकर गये हैं और वर्तमान में भी अतृप्त दिखायी देते हैं तो भविष्य में भी यही स्थिति बनी रहेगी। कहने का अभिप्रायः यह है कि आज तक किसी ने भी प्राप्त धन से, सौन्दर्यपूर्ण नारी के उपभोग से और स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों से कभी भी सन्तोष नहीं किया।
इस विषय में मनुष्य अधिक और अधिक की तृष्णा से ही पीड़ित रहा है और रहेगा यह एक कटु सत्य है। किसी से कुछ मांगना सबसे नीच कार्य है। संसार में तिनका सबसे हल्का होता है, तिनके से भी रूई अधिक हल्की होती है और रूई से भी हल्का होता मांगने वाला याचक।
अब सवाल यह उठता है कि यदि याचक हल्का होता है तो हवा उसे उड़ाकर क्यों नहीं ले जाती? उत्तर यह है कि वायु भी यह सोचती है, कि यदि मैं इसे उड़ाकर ले गई तो कहीं यह मुझसे ही न कुछ मांग बैठे। अभिप्राय यह है कि मांगने वाले याचक को सभी हेय दृष्टि से देखते हैं व उससे बचना चाहते हैं, इसलिए मांगना निकृष्ट कर्म है।
किसी को मीठी वाणी (chanakya neeti) से बात करते देखकर सभी व्यक्ति प्रसन्न होते हैं। अतः हर व्यक्ति को सबसे मीठी वाणी में ही बोलना चाहिए, मीठा बोलने में कंजूसी करने से क्या लाभ? इससे तो कुछ खर्च भी नहीं होता।
जब बिना कुछ दिये बहुत कुछ प्राप्त हो रहा है तो फिर वैसा न करना मूर्खता ही कहलाती है।
अतः मधुर वचन बोलने में ही मनुष्य का लाभ है। इस युग में मनुष्य को जन साधारण तथा राजाओं की भांति व्यवहार करना चाहिए, संन्यासियों की तरह नहीं।
उसे व्यवहार कुशल (chanakya neeti) होना चाहिए, उसके प्रति जो जैसा व्यवहार करे उसे भी उसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए, जो भलाई करता है उसके साथ भलाई करनी चाहिए किन्तु जो हिंसा का व्यवहार करे उसके साथ हिंसा करने में तनिक भी दोष नहीं होता। जिस शंख का पिता समुद्र है, लक्ष्मी जिसकी सगी बहन हैं, वह शंख भी घर-घर जाकर भीख मांगता है।
इसका कारण यह है कि शंख ने कभी कुछ दान नहीं दिया, इसी से उसे कुछ भी विशेष प्राप्त नहीं हुआ, इतने उच्च परिवार का होते हुए भी भिक्षुकों का सहायक ही रहा। शंख समुद्र से उत्पन्न होता है, लक्ष्मी का जन्म समुद्र से हुआ माना । जाता है। साधु लोग गृहस्थों के घर से भिक्षा लेने के लिए शंख बजाकर अपने आगमन की सूचना देते हैं।
इसलिए हर मनुष्य को दानशील होना चाहिए, दानशील मनुष्य को दुःखों का सामना नहीं करना पड़ता है। दुःख आने पर उनकी दानशीलता कवच बन जाती है। सम्पन्न होते हुए भी दानशील न होने पर अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है।