chanakya neeti: मनुष्य को ऐसे कर्म करने चाहिए जिनसे उसकी कीर्ति हमेशा फैलती रहे। विद्या, दान, तपस्या, सत्य भाषण, धनोपार्जन आदि के क्षेत्र में उसकी कीर्ति दसों दिशाओं में फैलनी चाहिए।
ऐसे सद्कर्म करने के लिए हजारों वर्षों के जीवन (chanakya neeti) की अपेक्षा यदि अल्प समय के लिए भी जीवन मिले तो वह अच्छा है। लोक-परलोक में निषिद्ध कर्मों को करने वाले मनुष्य का जीवन अल्प समय का भी व्यर्थ है।
उसे चाहिए कि सत्कर्मों के जरिये वह अपना लोक-परलोक सुधारे। सत्कर्म करते हुए जीवित रहने वाले मनुष्य की तो सद्पुरूष भी प्रशंसा करते हैं। सुन्दर भविष्य पर विश्वास न करें, भूतकाल की भी चिन्ता न करें।
जो कुछ भी करना है उसे परमपिता (chanakya neeti) परमेश्वर व स्वयं पर विश्वास करते हुए वर्तमान काल में ही करना चाहिए। जो बीत गया उसे स्मरण करके शोक न करें, शोक मनुष्य के धैर्य को नष्ट कर देता है, शोक के समान दूसरा कोई शत्रु नहीं है।
अभिप्राय (chanakya neeti) यह है कि किसी भी मनुष्य का भविष्य में क्या होगा, इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि होनी को नहीं टाला जा सकता, जो विधाता ने हमारे भाग्य में लिखा है वो तो होना निश्चित है।
इसीलिए बुद्धिमान एवं ज्ञानी पुरूष केवल वर्तमान को सिद्ध करने के कार्य में ही लगे रहते हैं। वे भविष्य के विषय में सोचकर अपना समय व्यर्थ नहीं करते।