chanakya neeti: (गन्ना), तिल, शूद्र, स्त्री, सोना, धरती, चन्दन, दही और पान को जितना अधिक मसला जाये, उसके गुणों में उतनी ही अधिक वृद्धि होती है। गन्ने को अधिक पेलने (पीड़न) से रस अधिक निकलता है।
तिलों का अधिक पीड़न करने से तेल अधिक निकलता है, मूर्ख स्त्री, पुरूष से अधिक पिटाई होने से भय से ही कुछ सीधे हो जाते हैं। (chanakya neeti) स्त्री को भोग के समय अधिक मसलने से वह प्रसन्न होकर पति के वश में रहती है। सोने को अधिक तपाने से उसमें अधिक चमक और शुद्धि आ जाती है। इसी प्रकार धरती को खोदने से वो अधिक उपजाऊ हो जाती है।
चन्दन, दही और पान भी अधिक रगड़ने से स्वाद व गन्ध में अति उत्कृष्ट हो जातेजितना धैर्य रखा जाये गरीबी में सहन-शक्ति उतनी ही अधिक बढ़ती । फटे हुए वस्त्र भी स्वच्छ एवं अच्छे ढंग से धुले हों तो उन्हें भी पहना सकता है। ठंडा भोजन भी गर्म होकर स्वादिष्ट हो जाता है।
इसी कार कुरूप मनुष्य गुणवान व कुरूप स्त्री शीलवती हो तो अपनी शालीनता व गुणों के कारण उनका आकर्षण बढ़ जाता है। उनके सम्पर्क में आने वाले को भी बुरा नहीं लगता है। (chanakya neeti) अभिप्रायः यह है कि धैर्य गरीबी का, शुद्धता वस्त्र की साधारणता का, उष्णता अन्न की क्षुद्रता का और गुण (सदाचार) कुरूपता का आवरण (पदा) है।
आचार्य चाणक्य (chanakya neeti) कहते हैं कि गरीब को धैर्य धारण करने वाला होना चाहिए, घटिया कपड़े को साफ-सुथरा धोकर पहनना चाहिए, ठंडे भोजन को गरम करके खाना चाहिए और कुरूप स्त्री-पुरूष को अपने चरित्र व गुण की उच्चता से अपनी कुरूपता को ढककर रहना चाहिए।