chanakya neeti: गुरु मनुष्य का सच्चा मार्गदर्शक होता है, बिना गुरु के कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता। गुरू राह में आने वाले रहस्यों की विवेचना करके उन्हें सुलझा देता है।
जो ज्ञान (chanakya neeti) केवल पुस्तकें पढ़कर नहीं हो पाता, उस ज्ञान को व्यावहारिक ढंग से समझाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।
गुरु के मार्गदर्शन के अभाव में केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करना ठीक वैसा ही होता है जैसा समाज में व्याभिचारिणी स्त्री का रहना अर्थ यह है कि गुरू के द्वारा ज्ञान प्राप्त करने से ज्ञान में जो गहराई और निखार आता है वह स्वयं पुस्तकें पढ़ने से नहीं आता।
विज्ञान के इस युग में यह इच्छा लगभग हर प्राणी की होती है कि सुखपूर्वक (आनन्दमय) जीवन बिताये। लेकिन विद्योपार्जन व सुख प्राप्ति, यह दोनों चीजें ऐसी है जो साथ-साथ नहीं चल सकतीं। अतः चाणक्य का कथन है।
जिस व्यक्ति को सुख की इच्छा हो वह विद्या प्राप्ति की इच्छा न करे, और इसी तरह जिसे विद्या प्राप्ति की कामना हो तो उसे सुख की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। (chanakya neeti) यानी दोनों में से एक ही चीज प्राप्त हो सकती है-विद्या या सुख। यह निश्चित है कि सुख के लिए विद्या-प्राप्ति में प्रयत्नशील होना मूर्खता ही कहलायेगी।
मनुष्य को ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे उसे अपमानित न होना पड़े। अपमानित होकर जीने की अपेक्षा तो प्राण-त्याग देना ही श्रेष्ठ है, क्योंकि प्राण त्यागने की पीड़ा तो सहन की जा सकती है, किन्तु अपमानित होकर जीवित रहने का दुःख तो जीवन पर्यन्त हर पग पर सताता रहता है।