chanakya neeti: किसी भी मनुष्य को शरीर के बाह्म सौन्दर्य को ही जानना और उसे पवित्र रखना ही मनुष्य का पहला धर्म है। जैसे फूल में सुगन्ध, तिल में तेल, काष्ठ में अग्नि, दूध में घी, ईख में गुड़ रहता है, वैसे ही आत्मा मनुष्य में वास करती है।
उसे जानकर ही अपने स्वरूप को जाना जा सकता है। के हृदय मे वास करती है उसे जानकर ही अपने स्वरूप को जाना जा सकता है। (chanakya neeti)
आचार्यजी का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प में गन्ध, तिल में तेल, लकड़ी में आग, दूध में घी और गन्ने में गुड़ दिखाई न देने पर भी विद्यमान है, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में अदृश्य आत्मा का निवास है। इस रहस्य को मनुष्य स्वविवेक से ही समझ सकता है।
(chanakya neeti) गन्ना और गन्ने का रस, पानी, दूध, जड़ी-बूटी, पान, फल तथा औषध का सेवन करने के उपरान्त सन्ध्या पूजन, दान-तर्पणादि नित्यकर्म कर लेने चाहिए।
अर्थात इनके सेवन करने से किसी व्यक्ति का मुंह जूठा नहीं हो जाता और उसे शुद्ध कर्मो के अनुष्ठान के लिए स्नान आदि से अपने को शुद्ध पवित्र नहीं करना पड़ता।