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chanakya neeti hindi: सफल होने के लिए, ऐसा रखें व्यवहार – चाणक्य

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chanakya neeti hindi: जिस प्रकार से इस संसार में खुदाई करके मनुष्य पृथ्वी के नीचे विद्यमान जल को प्राप्त कर लेता है, ठीक उसी प्रकार अपने गुरू की निःस्वार्थ सेवा करने वाला शिष्य भी गुरू के हृदय में स्थित विद्या को प्राप्त कर लेता है।

अभिप्राय है कि सच्चे मन से पुरूषार्थ करने पर हर व्यक्ति सम्भव फल की प्राप्ति कर सकता है।

बसन्तऋतु में फलने वाली आम्रजरी के स्वाद से प्राणीमात्र को पुलकित करने वाली कोयल की वाणी जब तक मधुर और कर्णप्रिय नहीं हो जाती, तब तक वह मौन रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करती है।

कहने का अभिप्रायः यह है कि हर मनुष्य को किसी भी कार्य को करने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अन्यथा असफल होने का भय बना रहता है।

chanakya neeti hindi: इस संसार में कुछ प्राणियों के किसी विशेष अंगों में विष होता है, जैसे सर्प के दांतों में, मक्खी के मस्तिष्क में और बिच्छू की पूंछ में विष होता है। इन सबसे हटकर दुर्जन एक ऐसा व्यक्ति है जिसके हर अंग में विष भरा रहता है। उसके मन, वचन और कर्म विष में बुझे तीर की तरह हर किसी के हृदय को बेंधकर दुख देते हैं।

अतः बुद्धिमान व्यक्ति को दुर्जन से बचना चाहिए व उसके संग से भी दूर रहने में ही बुद्धिमानी है।

chanakya neeti hindi: राजा, वेश्या, यमराज, चोर, बालक, याचक व डोम-ये सातों इतने अधिक निर्मम होते हैं कि दूसरों के दुख-सुख को नहीं जानते। इनके अन्दर स्वार्थ ही प्रमुख रहता है। राजा अपने कोष का, वेश्या धन की लोभ, यमराज प्राण लने का, चोर धन का, बालक हठ का, याचक अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने की सोचता रहता है। डाकू-ग्रामवासियों को तकलीफ देकर, डरा-धमकाकर अपना निर्वाह करता है।

प्रेम और व्यवहार सदैव ही समान स्तर के व्यक्ति व परिवार से रखना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है वह उपहास, अपमान व कष्ट प्राप्ति का पात्र बन जाता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि प्रेम व सहयोग-व्यवहार समान स्तर के व्यक्ति से रखें और ऐसे ही व्यक्ति की नौकरी करें, व्यापार भी समान स्तर के लोगों से ही फलता-फूलता है और वही स्त्री गृह की शोभा होती है जो कि समान स्तर के परिवार से सम्बन्ध रखती है।

chanakya neeti hindi: देवी उत्पात, शत्रु द्वारा आक्रमण, दुर्भिक्ष तथा आन्तरिक उथल-पुथल में डटे रहने वाला कभी न कभी मारा ही जाता है। ठीक उसी तरह जैसे देश में भयानक उपद्रव होने, आग लगने, आतंकवादियों द्वारा सामूहिक हत्याकांड करने, भूकम्प आने तथा प्रबल शत्रु देश पर आक्रमण किये जाने, भयंकर अकाल पड़ने तथा दुष्टों द्वारा राज्य सत्ता हथिया लिये जाने पर जो व्यक्ति भाग जाता है वही जीवित रह पाता है, अन्यथा सामने अपने स्थान पर डटे रहने वाला मारा जाता है।

यहां आचार्यजी का कथन है कि उक्त चारों स्थितियों में नागरिकों को कहीं अन्यत्र सुरक्षित स्थान पर शरण ले लेनी चाहिए नहीं तो प्राणरक्षा सम्भव नहीं हो पाती।

जो व्यक्ति निरन्तर पैदल चलता रहता है, उसकी खान-पान की उचित व्यवस्था नहीं रहती है और उसके सोने-जागने का भी उचित समय निर्धारित नहीं रहता है। इससे उसके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है, साथ ही उनके जीवन में बुढ़ापा भी शीघ्र ही आ जाता है।

निरन्तर खूटे से बंधे रहने से तथा भागने दौड़ने का अभ्यास न रह सकने के कारण घोड़े को वृद्धावस्था भी असमय ही आ जाती है। साथ ही जिन स्त्रियों से उनके पति मैथुन नहीं करते, वे बेचारी यौन सुख से वंचित होकर दुःख और चिन्ता में घुलती रहती है और यथाशीघ्र ही बूढ़ी
हो जाती हैं। कपड़ों को यदि बहुत समय तक तेज धूप में पड़ा रहने दिया जाये तो उनकी आयु भी क्षीण हो जाती है और वे जल्दी फट जाते हैं।

इस प्रकार निरन्तर पैदल यात्रा-मनुष्यों के लिए, निरन्तर घोड़ों का खूटे से बंधे रहना, अमैथुन-स्त्रियों के लिए, और कड़ी धूप कपड़ों के लिए हानिकारक है।

अतः यौवन की रक्षा के लिए मनुष्यों को पैदल यात्रा मर्यादा में ही करनी चाहिए, घोड़ों को नित्य घुमाना-फिराना चाहिए, युवतियों को अपने पति से मैथुन का अवसर मिलना चाहिए तथा कपड़ों को अधिक समय तक तेज धूप में नहीं पड़े रहने देना चाहिए।

जो बुद्धिमान मनुष्य इन अच्छे गुणों को अपने स्वभाव में समाहित करेगा और उन पर आचरण करेगा वह अपने सब कार्यों में सफलता हासिल करेगा व विजयी होगा। मनुष्य का सर्वोत्तम गुण तो यह है कि वह सभी गुणों को बुद्धिपूर्वक गृहण कर सकता है।

यहां आचार्य चाणक्य ने उन्हीं गुणों के बारे में फिर से सम्बोधित किया है। उनके कहने का अभिप्राय यही है कि जो समझदार मनुष्य सिंह, बगुले, मुर्गे, कुत्ते, गधे व कौवे के बीस (1+1+3+4+5+6=20) गुणों को भली प्रकार ग्रहण कर लेता है, वह अपने जीवन में कभी भी पराजय का मुंह नहीं देखता। उसे जीवन में सदैव और सर्वत्र विजय की प्राप्त होती है।

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