chanakya neeti: इस संसार में अंत तक न तो किसी ने सोने का मृग बनाया है, न पहले से बना हुआ सुना है, और न ही किसी ने उसे देखा है, फिर भी मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम उसे पाने के लिए उद्यत हो उठे और उसके पीछे भाग पड़े।
कहने का अभिप्रायः यह है कि ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि विनाश (chanakya neeti) के समय बुद्धि भी साथ छोड़ देती है अर्थात् संकट के समय मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति भी जाती रहती है।
अपने गुणों से कोई मनुष्य ऊंचा होता है, अर्थात् मान-सम्मान, प्रतिष्ठा की प्राप्ति करता है, केवल ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से ऊंचा नहीं होता। उदाहरणार्थ-किसी भवन की ऊंची चोटी पर बैठने से कौवा गरूड़ नहीं बन जाता।
सत्य तो यह है कि गुणों से स्थान की प्रतिष्ठा होती है। स्थान से किसी गुणी व्यक्ति की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती। (chanakya neeti) इस संसार में गुणी व्यक्ति हर जगह मान सम्मान पाता है। भले ही वह अर्थाभाव से पीड़ित हो, गुणी होने पर उसे हर जगह सम्मान मिलता है। असीम वैभव सम्पत्ति वाले किन्तु गुणहीन व्यक्ति का सम्मान नहीं