chanakya neeti: मांस खाने वाले की प्रवृत्ति हिंसात्मक होती है। उससे पृथ्वी लोक के निवासी भयभीत हो जाते हैं। शराब पीने वालों से व अशिक्षित लोगों से भी हमारे समाज के सद्पुरूष दूर ही रहना पसन्द करते हैं। ऐसे मनुष्य शक्ल-सूरत से ही मनुष्य दिखते हैं। अन्यथा उनकी गणना हिंसक प्रवृत्ति के पशुओं में ही होती है।
अभिप्राय (chanakya neeti) यह है कि मांस खाने वाले, शराब पीने वाले व निरक्षर (काला अक्षर भैंस बराबर) मूर्ख व्यक्ति पृथ्वी पर भार समान ही होते हैं। ऐसे मानवीय गुणों से रहित यदि उपरोक्त तीनों गुण किसी व्यक्ति में एक साथ हों तो उसका जीवन भी मृत्यु के समान हैं।
जिस किसी के पास विद्या रूपी धन है तो उसे सभी धन प्राप्त होते हैं। सभी धनों में विद्या रूपी धन ही सबसे बड़ा धन है। (chanakya neeti) यदि धनवान होते हुए भी किसी के पास विद्यारूपी धन नहीं है तो उसे दीन समझना चाहिए। जो मनुष्य धन से तो दरिद्र है, लेकिन विद्या उसके पास है तो उसे दीन नहीं समझना चहिए।
अभिप्राय (chanakya neeti) यह है कि तुच्छता और दरिद्रता का आधार धनहीनता न होकर विद्याहीनता है। अतः हर मनुष्य को धन की अपेक्षा विद्या प्राप्ति के लिए ही प्रयत्नशील होना चाहिए, क्योंकि विद्याहीन व्यक्ति धन को भी खो बैठता है जबकि विद्वान अपनी विद्या की शक्ति से पर्याप्त धन एकत्रित कर लेता है।