chanakya neeti: निःसन्देह वह व्यक्ति अविश्वसनीय होता है जो क्रुद्ध होने पर सारे भेद उगल देता है। ऐसा व्यक्ति कदापि मित्रता के योग्य नहीं होता है। आचार्य चाणक्य का कथन है कि ऐसा व्यक्ति निकृष्ट श्रेणी का होता है और जो भी ऐसे व्यक्ति को मित्र बनाता है वह सदैव धोखा ही खाता है।
अर्थात् क्रोध की अवस्था में भी जो व्यक्ति संयम बरतता है वही व्यक्ति मित्रता हेतु उपयोगी होता है। आचार्य चाणक्य के कथन का अभिप्राय यह है कि गुण और दोष का आंकलन करने के बाद ही व्यक्ति को मित्रता के लिये हाथ बढ़ाना चाहिए।
वरना वह जीवन पर्यन्त कष्ट ही भोगता है। पार्थिव अग्नि की ज्वाला से भी अधिक जलाने वाली अग्नि मानसिक अग्नि होती है, वह अग्नि तन-मन को जलाकर भस्म करती है।
पत्नी के वियोग की अग्नि मनुष्य को जलाने वाली होती है, विशेषकर वृद्धावस्था में मिलने वाला यह दर्द और भी अधिक कष्टकारी होता है।
अपमान तो अपमान ही होता है, किन्तु बन्धु-बांधवों द्वारा किया गया अपमान तो दिल को जलाकर ही रख देता है।
इसी प्रकार कर्जा अदा न कर पाने की चिन्ता भी मनुष्य को जलाती है। दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रों और मुखों की सभा में जाने से भी जो अपमान होता है वह शरीर को जलाता है।