chanakya neeti: राजा, योगी और ब्राह्मण घूमते हुये ही अच्छे लगते हैं। राजा यदि अपने राज्य के दूसरे नगरों में जाकर प्रजा से सम्पर्क बनाये नहीं रखता तो, उसका विनाश निश्चित ही है। प्रमादी राजा को सेवक कभी सही जानकारी नहीं देते। वे तो सदैव चापलूसी करते हैं।
इसी प्रकार योगी एक स्थान पर रहने से आसक्ति में पड़ जाता है जिससे उसका विरक्त भाव लुप्त होने लगता है। मोह-माया में न फंसने के भाव से ही शास्त्रों में योगी को तीन रातों से अधिक एक स्थान पर न टिकने का निर्देश दिया गया है।
ब्राह्मण (chanakya neeti) भी यदि भ्रमण नहीं करता तो उसे नये यजमान प्राप्त नहीं होते, पुराने यजमान भी उसके ज्ञान में नवीनता न पाकर तथा सदैव उसके मांगते रहने से परेशान होकर उससे विमुख हो जाते है।
यहां आचार्य का कहना है कि राजा को शत्रु व मित्र की जानकारी के लिए, ब्राह्मण को अपनी विद्या व कला के प्रसार के लिये, योगी को अपने वैराग्य की रक्षा के लिये भ्रमणशील होना चाहिए। जहां उक्त तीनों घूमते हुये ही शोभा पाते हैं, वहीं स्त्री का घुमक्कड़ होना अवांछनीय एवं वर्जित है।
अपने घर-परिवार में न रहकर इधर-उधर घूमने की प्रवृत्ति रखने वाली स्त्री ही दूसरों (परपुरूष) के जाल में फंस जाती है और अनचाहे अपना जीवन नष्ट कर लेती है।
अतः सच्चरित्र स्त्री को अकारण एवं अनावश्यक रूप से भूलकर भी दूसरों के यहां घूमने-फिरने की प्रवृत्ति नहीं अपनानी चाहिए। निरूद्देश्य दूसरों के घरों में झांकना स्त्री के लिए सर्वथा वर्जित है ।