chanakya neeti: इस संसार में जिस प्राणी का जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी अवश्य होनी है। फिर इसमें शोक और दुःख किस बात का जिस तरह रात्रि होने पर अनेक जातियों के विभिन्न रंग-रूप वाले पक्षी एक ही वृक्ष पर आकर रात्रि विश्राम करते हैं और प्रातःकाल होते ही दसों दिशाओं की ओर उड़ जाते हैं।
ठीक इसी प्रकार बन्धु-बान्धव रूपी कुछ जीव एक परिवार रूपी वृक्ष पर आकर मिलते हैं, परमात्मा से मिला अपना निश्चित जीवन जीते हैं और अन्त समय आने पर मृत्युलोक के लिए विचरण कर जाते हैं, फिर इसमें रोना-धोना और शोक किस बात का! आवागमन, अर्थात् उत्पत्ति और मृत्यु संयोग-वियोग तो जीवों का नित्यकर्म है।
धन का लोभ करने वाला ब्राह्मण असन्तुष्ट रहते हुए अपने धर्म का पालन नहीं कर पाता, इसलिए उसका गौरव शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। राजा भी सन्तुष्ट होते ही नष्ट हो जाता है, क्योंकि वह अपने राज्य के प्रति सन्तुष्ट होने के कारण महत्वाकांक्षी से रहित व सुस्त हो जाता है और शत्रु उसे घेर लेता है।
जो वेश्या लज्जायुक्त, संकोचयुक्त होती है, वह भी अपने-अपने ग्राहकों को प्रसन्न न कर पाने के कारण अपना व्यवसाय शीघ्र ही नष्ट कर बैठती है। इसके ठीक विपरीत लज्जा, संकोच न करने वाली कुलीन नारी अपनी चंचलता के कारण दुष्टों की वासना का शिकार होकर नष्ट हो जाती है, क्योंकि वह पतिव्रता नहीं रह पाती।
अभिप्राय यह है कि ब्राह्मण को सन्तोषी, राजा को महत्वाकांक्षी, वेश्या को निर्लज्ज और पतिव्रता कुलांगना नारी को शील-संकोच के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।