chanakya neeti: अपने कर्मों का फल भोगते हुए मनुष्य को भाग्यानुसार जो प्राप्त होता है, उसी के अनुसार उसकी बुद्धि बन जाती है। उसके सहायक भी वैसी ही सलाह देते हैं।
सभी परिस्थितियां निर्धारित भविष्य के अनुकूल बन जाती है। (chanakya neeti) जो भाग्य में लिखा है, वहीं होकर रहता है, लेकिन भाग्य भी पुरूषार्थ बदलता रहता है। अतः पुरूषार्थ करना ही हितकर है।
इस संसार में काल सबसे अधिक बलवान् (शक्तिशाली) है, उसका कोई भी व्यक्ति अतिक्रमण नहीं कर सकता। (chanakya neeti) काल ही समसत प्राणियों को क्षीण, दुर्बल और जीर्ण करता है। काल ही जीवों का संहार करता है।
इसके निद्रामग्न हो जाने के बाद भी काल जागता रहता है, अर्थात कालचक्र दिन-रात चलता ही रहता है। क्रान्तदर्शी कवि उसके संचालक बनकर सिद्धि प्राप्त करते हैं।