chanakya neeti: निःसन्देह किसी भी प्राणी में भय की आशंका का मूल अविश्वास और संदेह ही होता है, यदि परस्पर विश्वास की भावना जागृत है तो भय के लिये कोई स्थान ही शेष रहता। उदाहरण स्वरुप देखें तो सिंह आदि वन्य प्राणी भी सद्भाव के वशीभूत स्वामी-भक्त व्यवहार करते देखे गये हैं।
जिस प्रकार समुद्र के ऊपर वर्षा व्यर्थ है, उसी प्रकार तृप्त (पेट भरे हुए) पुरुषों से भोजन का अनुरोध करना भी व्यर्थ है। जिस तरह वर्षा की उपयुक्ता मैदानों में होती है उसी तरह भूखों को ही भोजन की जरुरत होती है। जिस प्रकार दिन में, सूर्य के प्रकाश में दीपक जलाना निरर्थक है, ठीक उसी प्रकार धनसम्पन्न व्यक्ति को दान देना भी निरर्थक है। दान का महत्व अभाव पीड़ित दरिद्रों को देने में ही है।
अतः समुद्र के ऊपर वर्षा का होना, तृप्त मनुष्यों को भोजन कराना, सूर्य के प्रकाश में दीपक जलाना, और धन सम्पन्न व्यक्ति को दान देना निरर्थक है। जबकि मैदानी भाग में वर्षा का होना, भूखों को भोजन कराना, रात्रि के अन्धकार में दीपक जलाना, अभाव पीड़ितों को दान देना सर्वथा वांछनीय है।