chanakya neeti: मनुष्य के जीवन में सुख दुःखों का मूल कारण स्नेह (प्रीति) है। जिस मनुष्य को अपने जिस आत्मीय के प्रति प्रेम होता है, उसे उसी के दुःख सुख की और उसी के रूष्ट-तुष्ट होने की चिन्ता और भय बना रहता है। प्रीति ही दुःखों की आधारशिला है।
प्रीति के कारण ही तेल में दीपक की बाती भी जल जाती है। पतंगा दीपक की लौ में जलकर भस्म हो जाता है। (chanakya neeti) इसी प्रकार मनुष्य अपने माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पत्नी और बन्धु-बान्धवों की आसक्ति के कारण इस संसार के चक्र में पिसता रहता है।
अभिप्राय यह है कि किसी व्यक्ति विशेष से आपको लगाव न होते उसके सुख-दुख से क्या लेना-देना? स्पष्ट है कि दुःखों का मूल स्नेह ही है। (chanakya neeti) इसीलिए ज्ञानवान मनुष्य को चाहिए कि वह स्नेह का सर्वथा त्याग कर दे जिससे कि वह निश्चित होकर सुखपूर्वक जीवन जी सके।
इस संसार में दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का स्वभाव होता है कि वे सद्पुरूषों के फैलते यश को देखकर ईर्ष्या से जलने लगते हैं। जब वे स्वयं उस स्थान को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं तब उस सद्पुरूष, गुणी महान व्यक्ति की बुराई करने लगते हैं।
‘अंगूर खट्टे हैं’ की नीति के अनुसार उनके प्रशंसनीय कार्यों को ही तुच्छ बताने लग जाते हैं। अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को दूसरों के यश से ईर्ष्या न करके स्वयं भी ऊंचा उठाने की उत्कंठा बनानी चाहिए, ताकि उनका यश भी सद्पुरूषों की तरह फैल सके।