पंकज लाहोटी, संजय गोलछा, अर्चित पारेख सहित वालफोर्ट प्रापर्टीज प्रा.लि.के खिलाफ भी शिकायतें (Navpradesh Scoop)
रायपुर/नवप्रदेश। वालफोर्ट प्रापर्टीज प्राइवेट लिमिटेड (Wallfort) की वादाखिलाफी के क्या कहने। कंपनी के खिलाफ मिली शिकायतों पर छत्तीसगढ़ भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (CGRERA) ने एक बार नहीं कई बार कार्रवाई की है। बावजूद इसके इस रियल एस्टेट कंपनी ने अपने आचरण में बदलाव करना शायद उचित नहीं समझा। संभवत: यही वजह रही कि समय-समय पर इनके खिलाफ शिकायतें होती रहीं।
सबसे हैरत वाली बात जो हमने अपनी पड़ताल में पाई वह यह कि शिकायतों पर जब रेरा (CGRERA) ने कार्रवाई की उस दौरान इनके अधिकांश प्रोजेक्ट रजिस्टर्ड ही नहीं थे। अलग- अलग प्रोजेक्ट (Wallfort) में मिली शिकायतों पर रेरा ने वालफोर्ट प्रापर्टीज प्राइवेट लिमिटेड सहित ओम श्रीसाईं डेवलपर्स, पंकज लाहोटी, संजय गोलछा, अर्चित पारेख को पार्टी बनाया। एकाध मामलों को छोड़कर अन्य कई मामलों में रेरा आथारिटी ने नियमों के अनुरूप काम कराने के लिए आदेशित कर निवेशकों को राहत दी।
Wallfort के इन प्रोजेक्टस में मिली शिकायतें
वालफोर्ट प्रापर्टीज प्राइवेट लिमिटेड के लगभग दर्जन भर से अधिक प्रोजेक्ट राजधानी रायपुर के विभिन्न क्षेत्रों में हैं। इनमें वालफोर्ट पैराडाइज, वालफोर्ट गार्डन, वालफोर्ट विहार, वालफोर्ट वुड्स, वालफोर्ट विले फेस-1 के खिलाफ सीजी रेरा में शिकायतें मिली। इनमें वालफोर्ट गार्डन के खिलाफ सबसे अधिक शिकायतों का होना पाया गया। रेरा (CGRERA) ने अलग-अलग आदेश के जरिए इन शिकायतों का निराकरण किया है।
बड़े-बड़े दावों की खुल रही परतें
आशियानें का सपना देखने वाले इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि जो दावे और वादे वालफोर्ट के कई प्रोजेक्ट में किए जाते हैं, वह ठीक तरह से पूरे किए जा रहे हैं ऐसा पूरी तरह सही नहीं है। वालफोर्ट (Wallfort) है तो सही के दावों की कलई तो रेरा की तरफ से हुई कार्रवाई स्वत: खोल देती है। कुछ शिकायतों पर नजर दौड़ाएंगे तो पता चलता कि बड़े-बड़े दावों के पीछे कितना सच है।
नियमों की पेचीदगी, निवेशकों की परेशानी
वालफोर्ट प्रापर्टीज प्राइवेट लिमिटेड के कई प्रोजेक्ट में मिली शिकायतों के आंकलन में एक बात यह भी निकल कर आई कि कई निवेशक नियमों की पेचीदगी में उलझ गए। यह बात तो रही महज शिकायत करने की हिम्मत करने वालों की। जानकारों की मानें तो बहुत से लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें इकरारनामे, जीएसटी, अन्य शुल्क और पजेशन इन सबकी बारीक जानकारी नहीं होती है। इन परिस्थतियों में वे बिल्डर की तरफ से छले जाने को ही अपनी नियति मान लेते हैं।