विनोद कुमार। Budget : भारत में कई हजार वर्षों से वंचित तबकों के साथ शोषण और अत्याचार होता आया है।वंचित समुदाय में ही पैदा हुए महापुरुषों ने समय-समय पर उन्हें गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने संघर्ष किया। हमारे महानायको/ महापुरुषों की इस श्रृंखला में कई हजार वर्षों से जारी शोषण का अंत करने का जिम्मा विश्वरत्न बोधिसत्व महान बाबा साहेब डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने उठाया।
संविधान बनने के बाद हमे कानून के समक्ष समानता मिली ।भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यहां के नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय देना सुनिश्चित हुआ। बाबा साहेब डॉक्टर अंबेडकर नहीं संविधान में वो सब कुछ लिखा जो समस्त मानव जगह के कल्याण व वंचितों को मुख्यधारा में जोडऩे के लिए आवश्यक थे।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 46 के अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति के शैक्षिक और आर्थिक विकास का प्रावधान है।अनुच्छेद 38 में राज्य विशिष्टया आय की असमानता को कम करने के लिए प्रयास करेगा और न केवल व्यक्तियों के बीच बल्कि बिना विभिन्न क्षेत्रों रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूह के बीच भी प्रतिष्ठा सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।
सदियों से वंचितों के साथ हुए अन्याय की भरपाई अथवा मुआवजा देने के लिए संविधान में लिखित आर्थिक न्याय के तारतम्य में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए विशेष घटक योजना (स्ष्टक्क)और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए अनुसूचित जनजाति उपयोजना(स्ञ्जक्क) पृथक बजट नामक एक अवधारणा लाई गई।1979-80के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने छठी पंचवर्षीय योजना के समय अनुसूचित जाति और जनजातियों को शैक्षिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने यह योजना शुरू की। इस योजना का लक्ष्य इन वर्गों को मुख्यधारा में जोडऩा था।
लेकिन तय समय में लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो पाई और आज 42 वर्ष बीतने के बाद भी गैर बराबरी और असमानता विद्यमान है। 1980 से लेकर आज तक केंद्र सरकार व राज्य सरकार अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए क्रमश:विशेष घटक योजना व अनुसूचित जनजाति उपयोजना के रूप में धनराशि बजट के रूप में जनकल्याण और आजीविका के लिए उपलब्ध कराती है ।बजट आवंटन समानुपातिक भागीदारी के तहत जनसंख्या के अनुपात में करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।लेकिन जनसंख्या के अनुपात में बजट आबंटन नही करना भी एक खामी है।
राज्य सरकार ने इस वर्ष कुल 104000 करोड़ के बजट में 21492 करोड़(20.67त्न) अनुसूचित जनजाति के लिए व 6746 करोड़(6.49) अनुसूचित जाति के लिए आवंटित किया है। वर्ष 2018 से लेकर 2020 तक कुल 29284 करोड़ अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लेप्स हो गए।बजट आवंटन विस्तार में जाएंगे तो पता चलेगा कि विभागों को प्राप्त धनराशि प्रचार प्रसार व क्रियान्वयन में इच्छाशक्ति की कमी के वजह सेलैप्स हो जाती है।यदि पढ़े लिखे वर्ग जागरूक हो जाएंगे तो इतनी बड़ी धनराशि लेप्स नहीं होगी।
सामाजिक न्याय के तहत उचित प्रतिनिधित्व के प्रावधानो के वजह से हम यहां तक पहुंचे हैं। अब हमारी जिम्मेदारी है कि बजट के बारे समझ विकसित करते हुए समाज में दावा दखल जांच हेतु टीम बनाकर कार्य करें और अपने आप को बजट विषय पर कार्य करने दक्ष करें। बहुत सारी योजनाएं सीधे जनकल्याण व आजीविका से जुड़ी हुई होती है। बजट के प्रति जागरूकता की कमी के कारण भारी-भरकम राशि हमारे हिस्से की लेप्स रही है।हमारे अनुसूचित जाति व जनजाती वर्ग के लाभार्थी लाभ लेने से वंचित हो जाते है।
बजट का प्रमुख उद्देश्य है अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों को आजीविका के साधन उपलब्ध करा कर आत्मनिर्भर बनाना है। यह बजट सिर्फ अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के परिवारो,व्यक्तियों व उनकी बसाहटों ब के लिए खर्च होना चाहिए। लेकिन ऐसा होना नहीं पाया गया है।
जब बजट प्रस्ताव (Budget) विधानसभा में पारित किए जाते हैं तत्पश्चात विभिन्न विभागों को संबंधित मदों में धनराशि आवंटित की जाती है। उक्त धनराशि का खर्चा करने का जिम्मा विभागों को होता है। इसके लिए व्यवस्थाएं भी है।सभी प्रदेशों की तरह हमारे छत्तीसगढ़ में भी अनुसूचित जाति व जनजाति कल्याण समितिहै। लेकिन समय-समय पर इनकी बैठक होती। यदि बजट की उपयोगिता पर बात करें तो अध्ययन पश्चात हमने पाया कि प्रत्येक वर्ष 30 से 40 प्रतिशत तक बजट की धनराशि लेप्स हो जाती है। नियमत: वित्तीय वर्ष के अंत में बचे फंड को कैरी फॉरवर्ड करते हुए अगले वित्तीय वर्ष के अनुसूचित जाति जनजाति फंड में जोडऩा चाहिए ।लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
बजट का सही तरीके से उपयोग 1980 से नहीं हो रहा है ।यह केवल आज की समस्या नहीं है। वर्क 2018-19 में अनुसूचित जाति विशेष घटक योजना में 7821.23 करोड़ आबंटित हुई थी।यह बजट प्रतिवर्ष घटते हुए 2022-23 में 6746.44करोड़ रुपए हो गई है। अर्थात लगभग 11000 करोड रुपए अनुसूचित जाति विशेष घटक योजना में कम हो गई है।अनुसूचित जाति वर्ग का फ़ंड में भारी कटौती आखिर क्यों हो गई?
ठीक इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति उपयोजना में वर्ष 2018-19 में 31526.77 करोड़ धनराशि आवंटित हुई थी ।बजट प्रावधान में घटते हुए वर्ष 2022-23 में 28238.79 करोड़ में आ गई है अर्थात लगभग 3200 करोड़ अनुसूचित जनजाति उपयोजना मे कम हो गई है। बजट की बड़ी धनराशि पुल पुलिया निर्माण में आबंटित की जाती है। अब देखने वाली बात यह है की जहां इस बजट की बड़े हिस्से पुल पुलिया निर्माण में खर्च हो रहे हैं तो क्या वहां की पूरी आबादी अनुसूचित जाति जनजाति की है?यह विचारणीय है।
बजट (Budget) पर देखरेख व क्रियान्वन की जिम्मेदारी आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधियों की है ।उनका दायित्व बजट पर समुचित क्रियान्वयन निगरानी व बजट संशोधन पर सुझाव देने की है।लेकिन हमारी भी जिम्मेदारी है कि बजट पर दावा,दखल व जांच करने का काम करें। हम भी अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। आइए हम सब मिलकर भारत के संविधान के प्रस्तावना में वर्णित सामाजिक व राजनीतिक न्याय के साथ आर्थिक न्याय सुनिश्चित कराने एवं आर्टिकल 46 के तहत आर्थिक न्याय में अभिवृद्धि करने ,आर्टिकल 38 के तहत आय की असमानताओ को कम करने अनुसूचित जाति विशेष घटक योजना व अनुसूचित जनजाति उपयोजना के तहत बजट में आवंटित धनराशि का समुचित उपयोग कराने और दावा दखल और जांच की इस प्रक्रिया में शामिल होकर काम करें।
श्रोत-छत्तीसगढ़ शासन की वेबसाइट, मा.उमेश बाबु साहब बजट विसलेष्क का विसलेषण ड्राफ्ट, व भारत के संविधान
लेखन व संकलन-