राजेश माहेश्वरी। Booster Dose : भारत में कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट से जुड़े कोविड मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ओमिक्रॉन संक्रमण के मामलों में राजधानी दिल्ली टॉप पर पहुंच गई है। ओमीक्रोन के बढ़ते मामलों के बीच अब बूस्टर डोज की मांग बढ़ती जा रही है। वहीं, अब तक इस पर हुई रिसर्च और स्टडी के आधार पर डॉक्टर भी बूस्टर डोज को आने वाले दिनों की जरूरत बता रहे हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि जो साइंस कह रही है, उसके अनुसार तो बूस्टर डोज की जरूरत है। क्योंकि वैक्सीनेशन के छह महीने के बाद इम्यूनिटी कम होने लगती है और ओमीक्रोन वेरिएंट इस इम्यूनिटी को आसानी से बाईपास कर रहा है। ऐसे में बेहतर इम्यूनिटी के लिए बूस्टर डोज की जरूरत है।
इंपीरियल कॉलेज, लंदन के वैज्ञानिकों ने हाल ही में कहा था कि भारत जैसे बड़े देश में बुजुर्गों और कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों को बूस्टर डोज देकर उन्हें कोरोना से खतरनाक वैरिएंट्स से सुरक्षित करना आवश्यक है। वैज्ञानिकों ने कहा, बुजुर्गों को बूस्टर शॉट देकर उच्च जोखिम वाली आबादी को सुरक्षित किया जा सकता है। बूस्टर शॉट देकर मौत के खतरे में करीब 5 फीसदी की अतिरिक्त कटौती की जा सकती है। इस बारे में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
इन सबके मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने बच्चों के टीकाकरण और बुजुर्गों, गंभीर बीमारों और स्वास्थ्य कर्मियों आदि के लिए तीसरी, एहतियाती खुराक (प्रीकॉशन डोज) के कार्यक्रमों की घोषणा कर नए साल का एक सार्थक उपहार देशवासियों को दिया है। कोरोना वैक्सीन की तीसरी खुराक को ‘बूस्टर डोज’ (Booster Dose) का नाम नहीं दिया गया है। संभव है कि वैज्ञानिक सलाहकारों ने ‘एहतियात’ को ही महत्त्वपूर्ण आंका है।
प्रधानमंत्री की बूस्टर डोज और बच्चों को कोरोना वैक्सीन लगाने की घोषणा के साथ ही चर्चा शुरू हो गई है कि बुजुर्गों को बूस्टर डोज कैसे और कौन सी दी जाएगी? बच्चों को कौन सी कोरोना वैक्सीन और कैसे दी जाएगी? बहरहाल संजीदा और तकनीकी सवाल 60 साल की उम्र और गंभीर बीमारियों वालों तथा स्वास्थ्य कर्मियों, अग्रिम मोर्चे के कर्मचारियों की सार्थक सुरक्षा का है कि एहतियाती खुराक के तौर पर उन्हें कौन-सा टीका लगाया जाएगा? इन वर्गों में टीकाकरण 10 जनवरी, 2022 को शुरू होना है। क्या उन्हें वही टीका दिया जाएगा, जिसकी दो खुराक वे ले चुके हैं।
यानी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की ही तीसरी खुराक! भारत के टीकाकरण में यही दो टीके दिए गए हैं। वह खुराक एहतियात के तौर पर कितनी असरदार होगी? चूंकि ये सबसे ज्यादा जोखिम वाले वर्ग हैं, लिहाजा उन्हें ऐसी खुराक दी जानी चाहिए, जिससे उन्हें सार्थक सुरक्षा मिल सके। अधिकतर वैश्विक शोध अध्ययनों के निष्कर्ष हैं कि बूस्टर डोज उन खुराकों की तकनीक से भिन्न होनी चाहिए, जो पहले दो खुुराक के तौर पर ली जा चुकी हैं। हालांकि एस्ट्राजेनेका का अध्ययन इससे अलग है।
उसकी रपट छपी है कि कोविशील्ड की दो खुराक लेने के बाद तीसरी खुराक बूस्टर के तौर पर ली जा सकती है और वह प्रभावशाली होगी। बहरहाल यदि भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दो खुराकों के बाद तीसरी, एहतियाती खुराक भी उसी टीके की दी जाती है, तो यह ऐसा फैसला होगा, जिसके परीक्षणों का स्थानीय डाटा ही उपलब्ध नहीं है। जब नए टीके भी उपलब्ध होंगे, तो क्या उन्हें भी बूस्टर या एहतियात के तौर पर अनुमति दी जाएगी?
इसका अर्थ यह हुआ कि भारत में एहतियाती खुराक लेने वाले वयस्कों के दो समूह मौजूद होंगे? क्या यह वैज्ञानिक होगा? एहतियाती खुराक तो पहली दो खुराकों से भिन्न होनी चाहिए और उसके फॉर्मूले का प्लेटफफॉर्म भी अलग होना चाहिए। यह हमारा निष्कर्ष नहीं है। हम उन वैज्ञानिक चिकित्सकों के शोध के सारांश उद्धृत कर रहे हैं, जो अभी तक दुनिया के सामने आए हैं और जिन्हें मेडिकल तौर पर मान्यता मिली है। भारत सरकार के तकनीकी सलाहकार समूह में भी प्राथमिक सहमति यही थी कि तीसरी, एहतियाती खुराक पहली दो खुराकों से भिन्न होनी चाहिए।
हमारा मानना है कि ऐसे नाजुक सवालों को पहले ही चिह्नित कर विमर्श किया जाना चाहिए था। दिल्ली एम्स के प्रख्यात वैज्ञानिक शोधार्थी प्रोफेसर डॉ. संजय राय सरीखे कुछ और भी होंगे, जो भारत में अभी बूस्टर (Booster Dose) जैसी कवायद को बेमानी मानते हैं। उनके मतानुसार जो लोग संक्रमित हो चुके हैं और टीका भी लगवा चुके हैं अथवा जिन्होंने दोनों खुराकें लीं और फि र संक्रमित हुए, लेकिन स्वस्थ हो चुके हैं, उनमें ‘सुपर इम्युनिटी’ होनी चाहिए। हालांकि हम उनके अध्ययन के डाटा से नहीं गुजरें हैं, लेकिन ऐसे निष्कर्ष हमने खुद संवादों के दौरान सुने हैं।
गंगाराम हॉस्पिटल के डॉक्टर धीरेन गुप्ता ने इस पर हुए रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि जो लोग वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके हैं, उनमें ओमीक्रोन के खिलाफ मात्र 20 से 30 पर्सेंट ही इम्यूनिटी पाई गई है, जबकि बूस्टर डोज के बाद यह इम्यूनिटी 50-70 फीसदी पाई गई। इसलिए बूस्टर डोज जरूरी है। उन्होंने कहा कि अभी तक की स्टडी में यह देखा गया है कि जिन लोगों को दोनों डोज लगी हैं, उनमें वायरस के खिलाफ बनी एंटीबॉडी छह महीने के बाद कम होने लगती है और यह वेरिएंट दोनों डोज के बाद भी संक्रमित कर रहा है।
भारत में भी इस वेरिएंट की एंट्री हो चुकी है। यह बहुत तेजी से फैलता है और वैक्सीन को बाईपास कर रहा है, इसलिए इसके खिलाफ बूस्टर डोज की जरूरत है। डॉक्टरों ने यह भी कहा कि अभी इसकी जरूरत इसलिए भी है क्योंकि इस वेरिएंट के फैलने में अभी समय लगेगा। इससे पहले कि यह कम्यूनिटी में पूरी तरह से फैल जाए, उससे पहले बूस्टर डोज लग जानी चाहिए।
आंकड़ों के आलोक में अगर बात की जाए तो देश में बहुत बड़ी आबादी है जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है। पहला एजेंडा सभी का वैक्सीनेशन करने का होना चाहिए। लेकिन इसके बाद बड़ी संख्या में ऐसे लोग खासकर हेल्थकेयर वर्कर और फ्रंटलाइन वर्कर हैं, जिन्हें वैक्सीन लगे छह महीने से ज्यादा हो गए हैं। अगर फि र से कोविड फैलता है तो ऐसे लोगों को पहले से बूस्टर डोज लगी होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारा सबसे कमजोर सेक्शन बच्चे हो सकते हैं इसलिए उन्हें जल्द से जल्द वैक्सीन लगनी चाहिए।
जानकारों की अनुसार दो डोज से रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी एंटीबाडी पहले ही 80 फीसद मजबूत हो चुकी है। अब बूस्टर डोज (Booster Dose) इस सुरक्षा कवच को और ताकतवर करेगी। जबकि सभी के इस तरह से सुरक्षित हो जाने पर कोरोना संक्रमण की रफ्तार अपने आप धीमी पड़ जाएगी। वहीं एक दूसरे के बीच संक्रमण फैलने की रफ्तार थमने से बच्चों पर भी खतरा काफी हद तक कम रहेगा।