Bollywood Actors Boycott : अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बॉलिवुड ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी है। एक लंबे समय से बॉलिवुड में ऐसा एक गैंग काम कर रहा है जो कला के नाम पर गंदगी परोस रहा है। बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है और धार्मिक आस्था को चोट पहुंचा रहा है। इसके खिलाफ समय समय पर विरोध में आवाजें भी उठती है लेकिन यह सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है।
हाल ही में पोर्न स्टार से फिल्म स्टार बनी सनी लियोनी ने कनिका कपूर और तोषी के साथ मधुबन में राधिका नाचे गाने पर जो फूहड़ता दिखलाई है वह वाकई बर्दाश्त के काबिल नहीं है। इसके खिलाफ भी लोगों ने विरोध दर्ज कराया है किन्तु उनकी शिकायत पर कोई कड़ी कार्यवाही हो पाएगी इसके उम्मीद कम है। इसके पहले भी बहुसंख्यक हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने की कई बार बॉलीवुड ने कोशिश की है और उसका भी विरोध हुआ था लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला।
दरअसल ये फिल्मकार कला और मनोरंजन (Bollywood Actors Boycott) के नाम पर नंगा नाच करने लगे है। जिसका अब प्रबल विरोध करना जरूरी हो गया है। अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ ये नहीं है कि कोई भी किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करें। ये फिल्मकार सिर्फ हिन्दुओं को ही निशाना बनाते रहे है। इनकी मजाल नहीं है कि अन्य धर्मो के खिलाफ ऐसी कोई कोशिश कर सके। सरकार को चाहिए कि बॉलीवुड की नाक में नकेल कसे अन्यथा लोग विरोध में सड़कों पर उतरने के लिए बाध्य हो सकते है।
बहरहाल लोगों का चाहिए कि वों ऐसे बॉलीवुड कलाकारों का बहिष्कार करें, उनकी फिल्में न देखे तभी उन्हे अक्ल आएगी और वे लोगों की भावनाओं का सम्मान करना सीख पाएंगे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है।
हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक (Bollywood Actors Boycott) नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्ति-नियुक्ति निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्ट्र-राज्य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है।