यशवंत धोटे
रायपुर/नवप्रदेश। BJP and Sangh : राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की तीन दिवसीय बैठक और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड््डा के शक्ति प्रदर्शन के बावजूद राज्य में बहुसंख्यक किसानों के लिए ऐसा कोई प्लान सामने नहीं आया जिससे मौजूदा सरकार की योजनाओं का तोड़ निकल सकें। गौरतलब है कि 2018 में कांग्रेस का घोषणापत्र भाजपा पर इतनी भारी पड़ा था कि भाजपा सीधे 52 से 15 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से 67 सीट पा गई।
इस परिणाम से कांग्रेस खुद भी आश्यचर्यचकित थी। किसानों (BJP and Sangh) का धान 2500 रुपये प्रति क्विंटल खरीदने की घोषणा ने सारे राजनीतिक समीकरण ध्वस्त कर दिये थे। उस समय भाजपा ने किसानों का दो साल का बोनस रोककर मोबाइल बांटे थे। पूरे नहीं बटने के कारण कुछ कबाड़ भी हुए थे लेकिन भाजपा परिणाम में पिछड़ गई थी। सरकार के चार साल पूरे होने पर किसानों वाले मसले पर सरकार का अभी भी फोकस है और हो सकता है चुनाव से पूर्व सरकार किसानों को लेकर और कोई घोषणा कर दे। यहां यह बताना जरूरी है कि धान राज्य की मुख्य फसल है और किसानों का आर्थिक आधार भी धान ही है, यही धान सरकार को बनाने और हटाने की ताकत रखता है।
तीन दिन पहले राष्ट्रीय सेवक संघ की बैठक में छत्तीसगढ़ के किसान और खेतिहार मजदूरों पर कोई विमर्श नहीं हुआ। अलबत्ता राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व की धार को पैना करने का संकल्प अवश्य हुआ। भाजपा और संघ की कायनात इस समय मीडिया से भी रूबरू रही लेकिन किसी ने भी मौजूदा कांग्रेस सरकार के स्थानीयवाद और किसानों को दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर कोई संकल्प या प्रस्तावित योजना के बारे में नहीं बताया। हालांकि 2018 के कांग्रेस के घोषणा पत्र का पोस्टमार्टम कर सरकार ने जिन मुद्दों को अब तक नहीं छुआ है उसे पूरा कराने के दबाव की रणनीति भाजपा की है। वहीं 29 आदिवासी सीटों पर फोकस करके बस्तर और सरगुजा जैसे क्षेत्रों से कांग्रेस की सीटे कम करने की रणनीति बनी है।
लेकिन यहां वर्ष 2003 का उदाहरण देना लाजमी होगा कि कांग्रेस ने सारे अवरोधों के बावजूद छत्तीसगढ़ में 90 में से 38 सीटे जीती थी और मध्यप्रदेश में 230 में से मात्र 35 सीटे जीती थी। यानि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में बिना सत्ता के भी पिछले 3 बार से 35-37-38 सीटे जीतती आ रही है। भाजपा के लिए शहरी सीटे आसान हो सकती है लेकिन ग्रामीण सीटों पर आज भी कांग्रेस भारी है। और इन्हीं सीटों पर किसान बहुसंख्यक है जो भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
भाजपा ने संगठन में किसान पृष्ठभूमि के नेताओं को तवज्जों (BJP and Sangh) जरुर दी है लेकिन उन्हें स्वतंत्र होकर काम करने दिया जायेगा या नहीं इसमें संदेह है। इसलिए यह कहा जा सकता है पिछले एक सप्ताह के तामझााम के बावजूद किसानों के लिए कुछ खास नहीं निकलने के कारण भाजपा को नये सिरे से मंथन करने की जरूरत है।