बिलासपुर, 4 मई। काम से निकाले गए एक प्राइवेट कंपनी के कर्मचारी को बिलासपुर हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने लेबर कोर्ट को 6 महीने की समय सीमा में मामले कि सुनवाई कर उचित निर्णय लेने के निर्देश दिए। साथ ही कर्मचारी को मामले की अंतिम सुनवाई तक हर महीने वेतन देने का आदेश जारी किया गया (Bilaspur Highcourt) है।
यही नहीं, कोर्ट ने कंपनी को मुकदमेबाजी के लिए 20 हजार रुपए कॉस्ट के रूप में भी देने का आदेश दिया है। जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2017 में एसबी मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड (कंपनी) के खिलाफ लेबर कोर्ट रायपुर में अवैध छटनी से व्यथित होकर एक कर्मकार ने मामला दर्ज किया था।
कर्मकार सत्येंद्र सिंह राजपूत जो कि वर्ष 2008 से एसबी मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित एक न्यूज चैनल में वीडियो एडिटर के पद पर भर्ती हुए थे, वे वर्ष 2017 में एसोसियेट प्रोडूसर के पद पर काम कर रहे (Bilaspur Highcourt) थे।
लेबर कानूनों के विपरीत और बिना पूर्व नोटिस के उन्हें आकस्मात ही कंपनी से अवैध छटनी कर काम से निकाल दिया। लेबर कोर्ट ने वर्ष अक्टूबर 2022 में सत्येंद्र सिंह राजपूत की बहाली और सेवा समाप्ति दिनांक से सेवा में पुनस्र्थापित करने के दिनांक तक वेतन भत्ता और अन्य हितलाभ प्रदान करने का अधिनिर्णय घोषित किया था।
एसबी मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा लेबर कोर्ट के द्वारा घोषित अधिनिर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट याचिका (लेबर) दायर किया। कंपनी ने सुनील ओटवानी और शोभित कोष्टा अधिवक्ताओं के मार्फत दायर की गई रिट याचिका में लेबर कोर्ट द्वारा घोषित अधिनिर्णय को खत्म कर, पुन: लेबर कोर्ट में अपना पक्ष रखने की प्रार्थना की (Bilaspur Highcourt) थी।
अधिवक्तगण ने कोर्ट को यह बताया की अधिनिर्णय एक पक्षीय होने के कारण रद्द किए जाने योग्य है और उन्हें सुने बिना लेबर कोर्ट रायपुर द्वारा अधिनिर्णय घोषित कर दिया गया था। वहीं पीडि़त कर्मचारी की ओर से हाईकोर्ट के अधिवक्ता अनादि शर्मा ने पैरवी की।
अधिवक्ता श्री शर्मा नें कोर्ट में यह तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कंपनी को पूर्व में लेबर कोर्ट द्वारा नोटिस दिया था। जिसके बाद कंपनी अपने अधिवक्ताओं के द्वारा, लेबर कोर्ट में 3 अलग तिथियों पर उपस्थित भी हुए थे, जिसके बाद कंपनी नें केस की सुनवाई में देरी करने के उद्देश्य से रणनीति के तहत लेबर कोर्ट में उपस्थिति देनी बंद कर दी थी।
छह महीने का दिया समय : इस पर मामले की अंतिम सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश एनके व्यास के एकल पीठ में हुई। उच्च न्यायालय नें कोविड संक्रमण के बाद याचिकाकर्ता कंपनी को लेबर कोर्ट द्वारा पुन: नोटिस जारी कर केस की तिथि नहीं बताये जाने,
अधिनिर्णय के पूर्व, दोनों पक्षों को नोटिस नहीं दिये जाने के कारण और न्यायहित में लेबर कोर्ट द्वारा घोषित एकपक्षीय अधिनिर्णय को रद्द करते हुए पुन: लेबर कोर्ट को दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुए 6 महीने की समय सीमा में तय करने का निर्णय दिया। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय (एस. बी. मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड विरुद्ध सत्येन्द्र सिंह राजपूत) में याचिकर्ता को कर्मकार के हित में,
जब तक लेबर कोर्ट पुन: मामले में अधिनिर्णय पारित नहीं करती, तब-तक हर महीने कर्मकार/सत्येन्द्र सिंह राजपूत को वेतन देते रहने का निर्देश पारित किया।
साथ ही न्यायालय नें कंपनी को निर्देश देते हुए मुकदमेबाजी के खर्च के रूप में 20 हजार रुपए कॉस्ट कर्मकार को दिये जाने का फ ैसला सुनाया। हाई कोर्ट बिलासपुर ने अपने इस फैसले को रिपोर्टिंग के लिए अनुमोदित भी किया है।