Bihar : पिछले चुनाव में सीधी लड़ाई का हश्र देख कोरोना को हथियार बना रही भाजपा
लोकसभा चुनाव से ही लगातार पार्टी के अंदर चल रही भाजपाई सीएम मुहिम
शिशिर सिन्हा/ नवप्रदेश/पटना। दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है, लेकिन पीने का मन हो तो रोकना मुश्किल है। बिहार (Bihar) में यही हो रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव (assembly election) में नीतीश कुमार (nitish kumar) से अलग होकर भाजपा (bjp) ने अपना हश्र देख लिया था।
इस बार ऐसा हश्र नहीं हो, इसलिए नीतीश को पहले ही सीएम का चेहरा बता दिया गया है। लेकिन, सच्चाई यहीं तक नहीं है। कोरोना (corona) को भाजपा ने मौके के रूप में इस्तेमाल किया है। लोकसभा चुनाव से पार्टी में चल रही भाजपाई सीएम की मांग को कोरोना से हवा मिल गई है। संकेत के रूप में प्रमाण सामने हैं कि बिहार (bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समय पर चुनाव (assembly election) चाह रहे और भाजपा कोरोना और बाढ़ के नाम पर उनकी राय से अलग समय बढ़ाने की चाह रख रही।
निर्वाचन आयोग के मांगे जाने पर भाजपा और जदयू ने अलग-अलग राय दी है और देखने वाली बात यह भी है कि विपक्ष भी भाजपा जैसी राय के साथ आकर नीतीश कुमार को अलग-थलग कर चुका है। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो भाजपा राष्ट्रपति शासन में चुनाव की तैयारी में है और इसकी बिसात कोरोना के आगमन के बाद ही बिछ गई थी।
राष्ट्रपति शासन में चुनाव होने पर निर्वाचन में अहम भूमिका निभाने वाले केंद्र के हिसाब से नियुक्त-प्रतिनियुक्त हो सकेंगे। वैसे, अब तो भाजपा के पुराने साथी और भारतीय सबलोग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार ने कोरोना (corona) को संभाल नहीं पाने के कारण नीतीश कुमार का इस्तीफा लेकर राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग रख भी दी है।
कोरोना की शुरुआत के साथ ही बिछी बिसात, कई मोहरे बढ़े आगे
बड़ी जीत के बावजूद जदयू के केंद्र सरकार में शामिल नहीं होने के बाद सेसुशील मोदी को छोड़ भाजपा के ज्यादातर नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व तक यह आवाज पहुंचाई कि इस बार क्षेत्रीय दल नहीं, भाजपा का मुख्यमंत्री बने। अलग लड़ने का हश्र भाजपा देख चुकी थी, इसलिए चुप थी। लेकिन, कोरोना में गणित बदल गया है। बिहार (bihar) में भाजपा ने कोरोना की पूरी लड़ाई नीतीश के हाथों में सौंप दी। पहले भाजपाई स्वास्थ्य मंत्री का विभाग फ्रंट पर था, लेकिन मंत्री मंगल पांडेय ने ही पूरी ताकत झोंककर एक्टिव प्रधान सचिव की विभाग से विदाई करा दी। इसके बाद से बिहार (bihar) में स्वास्थ्य विभाग की जगह मुख्यमंत्री सचिवालय कोरोना के लिए फ्रंट पर आ गया। मतलब, कोरोना में अच्छा-बुरा सबकुछ नीतीश कुमार का।
नीतीश को भाजपा ने रैली से दिला दी गति
नीतीश कुमार कोरोना की मॉनीटरिंग के बीच चुनाव को लेकर स्टार्ट नहीं ले रहे थे तो भाजपा ने वर्चुअल रैली के जरिए चुनावी तैयारी का संदेश दे दिया। इसके बाद जदयू ने वर्चुअल संवादों में गति पकड़ ली, जबकि भाजपा ने स्टैंड बदलते हुए कोरोना और बाढ़ के आधार पर चुनाव से दूरी बना ली है। आयोग को भी यही बताया है कि कोरोना संक्रमण की गति के कारण चुनाव कराना अभी सही नहीं होगा।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल समेत पार्टी के दर्जनों नेताओं की कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट को भी इसी कारण इससे जोड़कर प्रचारित किया गया, हालांकि प्रदेशाध्यक्ष के एम्स में भर्ती होने के बाद इस प्रचार को विराम लगा। इधर अब विपक्षी दलों ने भी चुनाव की तारीख आगे बढ़ाने की मांग रख दी है, जबकि नीतीश कुमार के जदयू एक तरह से अकेली पार्टी बन गई है जो समय पर चुनाव चाह रही।
नीतीश कुमार लाशों के ढेर पर चुनाव चाह रहे
कोरोना से बदतर हालात के बीच लाशों के ढेर पर नीतीश कुमार चुनाव कराना चाह रहे हैं। पार्टी अपना पक्ष आयोग के पास औपचारिक तौर पर रखेगी। हमें तो प्रदेश में लॉकडाउन के बीच हर तरफ कोरोना से परेशान लोग दिख रहे हैं। इलाज के लिए अस्पताल नहीं हैं।
-तेजस्वी यादव, नेता प्रतिपक्ष, बिहार
स्वरूप बदले पर लोकतंत्र में चुनाव समय पर हो
‘यह चुनाव आयोग को तय करना है। लोकतंत्र के लिहाज से समय पर चुनाव कराया जाना चाहिए। चुनाव किस तरह कराएं और प्रचार का क्या स्वरूप हो, कोरोना के कारण इसपर चर्चा हो सकती है। सभी राजनीतिक दलों की राय पर आयोग ध्यान दे, लेकिन लोकतंत्र की गरिमा कायम रहनी चाहिए।
-निखिल आनंद, प्रवक्ता जदयू
प्रदेश अध्यक्ष तक संक्रमित, चुनाव की क्या बात करें
‘ प्रदेश अध्यक्ष समेत हमारे नेता बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव होकर अस्पतालों में हैं। भाजपा कोरोना संक्रमण के समय चुनाव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हो पा रही है, इसलिए अब आयोग को निर्णय लेने दें।
–डॉ. प्रेम कुमार, कृषि मंत्री, बिहार
राष्ट्रपति शासन में केंद्र की मर्जी चलती तो जरूर है
‘पछले चुनावों को याद कीजिए। चुनाव के ठीक पहले सरकार ने कई डीएम-एसपी समेत अधिकारियों का तबादला किया था। चुनाव आयोग ने सरकार के कई निर्णय बदल दिए। फिर सरकार आई तो सरकार ने अपने निर्णय को दोबारा लागू करा दिया। मतलब, साफ है कि चुनावों प्रक्रिया में इनकी भूमिका तो होती ही है। राष्ट्रपति शासन में यह अधिकार काफी हद तक केंद्र सरकार के पास चला जाता है, क्योंकि राज्यपाल अमूमन केंद्र के हिसाब से ही काम करते हैं।
-सुनील कुमार सिन्हा, अध्यक्ष चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च