Bihar Jharkhand Political Deal : बिहार विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (Bihar Jharkhand Political Deal) का अचानक मैदान छोड़ देना अब सियासी रहस्य बन गया है। दिवाली से ठीक पहले झामुमो ने अपनी चुनावी घोषणा वापस ले ली, जबकि दो दिन पहले तक पार्टी छह सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में थी।
धनतेरस के दिन झामुमो के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर न केवल छह सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, बल्कि कहा था कि जरूरत पड़ी तो पार्टी दस सीटों पर भी उतर सकती है। उम्मीदवारों को सिंबल देने की तैयारी पूरी थी। लेकिन अचानक दीपावली के पूर्व संध्या पर झामुमो के मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान कर दिया कि पार्टी अब बिहार में चुनाव नहीं लड़ेगी।
यह यू-टर्न केवल बिहार ही नहीं, बल्कि झारखंड की राजनीति (Bihar Jharkhand Political Deal) में भी भूचाल लेकर आया। झामुमो नेताओं ने खुलकर राजद और कांग्रेस पर राजनीतिक धूर्तता का आरोप लगाया और झारखंड में महागठबंधन की समीक्षा की मांग कर दी। झामुमो के मंत्री सुदिव्य सोनू ने यहां तक कह दिया कि राजद कोटे से झारखंड कैबिनेट में शामिल मंत्री पर कार्रवाई की जाएगी।
उधर, राजद ने भी जवाबी हमला बोला। राजद नेता गौरीशंकर यादव ने कहा कि झामुमो का बिहार में कोई वजूद नहीं है। उन्होंने तंज कसा कि अगर झारखंड में राजद झामुमो से गठबंधन तोड़ ले, तो झामुमो 16-18 सीटों तक सिमट जाएगा। अब सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या वाकई हेमंत सोरेन और तेजस्वी यादव (Bihar Jharkhand Political Deal) के बीच कोई राजनीतिक डील हुई है?
जो हेमंत सोरेन बीजेपी के साथ समझौता करने के बजाय जेल जाना पसंद करते हैं, वे आखिर तेजस्वी यादव के साथ किसी गुप्त समझौते पर क्यों उतरेंगे? और अगर कोई डील हुई भी है, तो उसे छिपाया क्यों जा रहा है? या फिर दोनों दल सिर्फ जनता के सामने बयानबाजी कर सियासी भ्रम पैदा कर रहे हैं?
सियासी गलियारों में अब यही चर्चा है कि बिहार चुनाव के बहाने कहीं झारखंड की राजनीति का नया समीकरण तो नहीं बन रहा? दिवाली की रात बुझी हुई यह ‘सियासी बाती’, अब दोनों राज्यों की राजनीति में नई रोशनी और नए सवाल जगा गई है।