डॉ. श्रीनाथ सहाय। Big Relief to The Poor : मोदी सरकार ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत नि:शुल्क राशन उपलब्ध कराने की अवधि 6 माह बढ़ाने का फैसला किया हैै। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की घोषणा मार्च 2020 में की गई थी। शुरू में यह योजना अप्रैल-जून 2020 की अवधि के लिए शुरू की गई थी, लेकिन बाद में इसे 30 नवंबर, 2021 और 31 मार्च 2022 तक बढ़ा दिया गया था। अब यह सुविधा इस साल 30 सितंबर तक जारी रहेगी।
इससे करीब 80,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ सरकारी खजाने पर आएगा। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में योगी कैबिनेट ने अपने पहले फैसले के तहत मुफ्त अनाज मुहैया कराने का समय 3 माह बढ़ाकर इस वर्ष 30 जून तक किया है। दोनों ही फैसले बेहद मानवीय हैं, क्योंकि कोरोना महामारी के दो साल बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। करीब 25 करोड़ लोग गरीबी-रेखा के तले जीने को विवश हैं। यह आज की विकराल समस्या है, क्योंकि बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर 8 फीसदी से अधिक है। जिनके रोजगार आपदा के दौर में छिन गए थे, उनकी 100 फीसदी बहाली में कितना वक्त लगेगा, शायद सरकारों के पास भी सटीक आकलन नहीं हैं।
हालांकि भारत सरकार में आर्थिकी से जुड़े शीर्ष अधिकारियों के सुझाव थे कि कोरोना-पूर्व की अर्थव्यवस्था की पूर्ण बहाली के लिए अब मुफ्त अन्न योजना बंद कर देनी चाहिए, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी नहीं माने और योजना की अवधि बढ़ाने का निर्णय लिया। इस योजना पर राजनीतिक तौर पर संदेह भी व्यक्त किए जा रहे थे कि चुनावों के बाद इसे समाप्त किया जा सकता है अथवा कुछ कटौतियां संभव हैं! संदेह गलत साबित हुए।
अब आसार ऐसे हैं कि 2024 के आम चुनावों तक यह योजना जारी रखी जा सकती है! बहरहाल केंद्र और राज्य दोनों के स्तर पर गरीबों को कमोबेश भुखमरी का शिकार नहीं होना पड़ेगा। यदि 6 माह के दौरान वितरित किए जाने वाले अनाज को भी जोड़ दिया जाए, तो भारत सरकार 1003 लाख मीट्रिक टन अनाज नि:शुल्क ही गरीबों को मुहैया करा देगी। यह मात्रा अभूतपूर्व है। हालांकि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत, राशन डिपुओं के जरिए, सस्ता गेहूं और चावल उपलब्ध कराने की व्यवस्था बदस्तूर जारी रहेगी।
देश में कोरोना वायरस (Big Relief to The Poor) की दस्तक के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने युद्ध स्तर पर राहत और बचाव के उपाय शुरू कर दिए। इसके तहत देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई, जिससे फैक्ट्रयिां अचानक बंद हो गईं। सारी आर्थिक गतिविधायां ठप्प पडऩे से गरीब प्रवासियों के सामने भोजन का संकट उत्पन्न हो गया। ऐसे हालात में प्रधानमंत्री मोदी संकटमोचक के रूप में सामने आए और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 कोरोड़ लोगों के लिए मुफ्त राशन की घोषणा की। साथ ही वन नेशन वन राशन कार्ड योजना को तेजी से पूरे देश में लागू करने का फैसला किया।
2021 में अप्रैल से जुलाई के बीच जब कोरोना की दूसरी लहर पीक पर थी, तब बिहार के साथ ही अन्य राज्यों के प्रवासियों के लिए यह योजना वरदान साबित हुई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना संक्रमणकाल में प्रधानमंत्री गरीब अन्न योजना वरदान साबित हुई। पिछले साल अप्रैल से लेकर नवंबर तक का समय ऐसा रहा, जब छोटे-छोटे व्यवसाय चलाकर रोजी-रोटी कमाने वालों का धंधा पूरी तरह चैपट रहा। ऐसे में उन लोगों के सामने परिवार का पेट भरने की समस्या रही लेकिन इस योजना के कारण जिले के गरीब परिवारों के पास इस आपदा के दौरान अन्न की कमी नहीं होने पाई। किसी को भूखे पेट नहीं सोना पड़ा। लगातार संचालित रही इस योजना में सभी तरह के राशनकार्ड धारकों को गेहूं, चावल के साथ ही चना हर महीने निश्शुल्क प्राप्त होता रहा।
देश के आबादी के हिसाब से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने दूसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक में बड़ा फैसला लेते हुए ऐलान किया कि मुफ्त राशन योजना को तीन महीने और बढ़ाएगी। राशन देने वाली यह योजना हाल के चुनावों में भाजपा सरकार की सबसे आकर्षक उपलब्धियों में से एक थी। लगभग 15 करोड़ लाभार्थियों में, यह योजना राज्य की 60 फीसदी से अधिक आबादी को कवर करती है।
गरीब कल्याण अन्न योजना अतिरिक्त मानवीय सुविधा है। जन-कल्याण के राष्ट्रीय प्रयास के समानांतर एक विसंगति भी है कि पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। पांच राज्यों में चुनाव थे, लिहाजा 137 दिन तक पेट्रो पदार्थ महंगे नहीं हुए थे, लेकिन अब जनादेश आने और सरकारें बन जाने के बाद बीते 5 दिनों से हररोज 80 पैसे प्रति लीटर दाम बढ़ाए जा रहे हैं। विशेषज्ञों के आकलन हैं कि पेट्रो पदार्थ 20-25 रुपए प्रति लीटर महंगे किए जाने हैं। यह किश्तों में लिया जाएगा। केंद्र सरकार की दलील रहती है कि तेल की कीमतों पर उसका नहीं, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का नियंत्रण होता है। तो फिर 137 दिन तक दाम क्यों नहीं बढ़े?
बीते साल भी (Big Relief to The Poor) कुछ राज्यों में चुनाव थे, तब भी 84 दिनों तक तेल महंगा नहीं किया गया था। तेल का यह चुनावी अर्थशास्त्र हमारी समझ के परे है। जिस तरह तेल और रसोई गैस महंगे किए जा रहे हैं, उसका असर गरीब और मध्यवर्गीय लोगों पर ज्यादा पड़ता है, क्योंकि उनके आर्थिक संसाधन सीमित होते हैं। क्या सरकारों ने यह समीकरण तय किया है कि एक तरफ 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया जाए, तो दूसरी ओर तेल की कीमतें लगातार बढ़ाकर आम आदमी की जेब पर डाका डाला जाए? जन-कल्याण का यह समाज-शास्त्र भी समझ के परे है। पेट्रो पदार्थ महंगे होते रहेंगे, तो दूसरी कई वस्तुओं के भी दाम बढ़ेंगे। अब जरूरी यह लगता है कि जन-कल्याण भी जारी रहे और तेल की एक राष्ट्रीय नीति भी बनाई जाए, तभी आम देशवासी को असली राहत मिल पाएगी।