-समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले पर संविधान पीठ ने सुनाया अहम फैसला
नई दिल्ली। Gay Marriage: समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से जुड़े मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाया है, जिसने देश के सामाजिक और राजनीतिक जगत का ध्यान खींचा है। मामले पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने कहा कि उद्धरण केवल कानून को परिभाषित कर सकता है। साफ कहा गया है कि कानून नहीं बनाया जा सकता।
उन्होंने कहा कि अगर अदालत LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को विशेष विवाह अधिकार देने के लिए विशेष अधिनियम की धारा 4 को पढ़ती है या उसमें कोई शब्द जोड़ती है, तो यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिकता सिर्फ एक शहरी अवधारणा नहीं है। यह केवल शहरी वर्ग तक ही सीमित नहीं है। न केवल अंग्रेजी बोलने वाले गोरे, बल्कि गांव की एक किसान महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है। ऐसी छवि बनाना कि ऐसे लोग केवल शहर में ही रहते हैं, उन्हें ख़त्म करना है। यह नहीं कहा जा सकता कि शहर में रहने वाले सभी लोग कुलीन हैं।
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि अब विवाह की संस्था बदल गई है। सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह तक, कई बदलाव हुए हैं। यह एक निर्विवाद तथ्य है और ऐसे कई बदलाव संसद के माध्यम से आये हैं। कई वर्ग इन बदलावों के ख़िलाफ़ रहे हैं। लेकिन फिर भी एक बदलाव आया है। उसके लिए, यह कोई निश्चित या अपरिवर्तनीय इकाई नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम संसद या राज्य विधानसभाओं को विवाह की नई संस्था बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। न ही हम विशेष विवाह अधिनियम को केवल इसलिए असंवैधानिक करार दे सकते हैं क्योंकि यह समलैंगिक विवाहों को मान्यता नहीं देता है। क्या विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव की जरूरत है? संसद को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने में सावधानी बरती।