आलोक शुक्ला
बापू राम भक्त (Bapu Ram Devotee) थे। वे भारत (india) में राम राज्य (Ram Rajya) की कल्पना करते थे। अंतिम समय (Last Time) में भी उनके मुख से ‘हे राम'(Hey ram) ही निकला था। आज बापू की 150 वीं जयंती (150th birth anniversary) के अवसर पर मन में बड़ी स्वाभाविक सी जिज्ञासा है – कौन थे बापू के राम? राम कथा को कहने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कथा प्रारंभ करने के पूर्व यह प्रश्न स्वयं से ही किया था ‘प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि’। शायद तुलसी के मानस का शेष भाग इस प्रश्न का उत्तर खोजने का ही प्रयास है।
भारत के मनीषियों ने राम (Ram) को विविध रूपों में देखा है। तुलसी के राम कभी तो आज्ञाकारी पुत्र हैं, कभी विरही पति हैं, कभी रावण पर विजय प्राप्त करने वाले योध्दा भी हैं, परन्तु वास्तव में तो वे सर्वशक्तिमान ईश्वर ही हैं। दूसरी ओर कबीर ने भी अपनी चदरिया राम के रंग में रंगी थी। कबीर के राम निर्गुण हैं। कबीर का कहना है कि पाथर को पूजने से हरि नहीं मिलते। मन को हरि के रंग में रंगने से ही हरि मिलते हैं।
राम का कौन सा रूप है जिसका भजन बापू करते थे? बापू के राम वे तो निश्चित ही नहीं हैं जो सर्वोच्च न्यायालय में अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिये वाद लड़ रहे हैं। राष्ट्रपिता के राम वे भी नहीं हो सकते जो भारत की लगभग एक चौथाई आबादी के राम नहीं हैं।
बापू के राम तो वंचितों पर कृपा करने वाले हैं, पतित पावन हैं। बापू के राम का नाम ईश्वर भी है और अल्ला भी। वे दुखि:यों के दुख दूर करते हैं, भटके को राह दिखाते हैं और बेसाहरों का सहारा हैं। कहते हैं कि बचपन में बापू को भूत-प्रेत आदि से बहुत डर लगता था। तब उनके घर पर काम करने वाली एक नौकरानी रंभा ने उनसे कहा कि राम का नाम लेने से तुम्हारा डर भाग जायेगा। शायद करुणामय राम से नन्हे मोहन की यह पहली भेंट थी। राम का नाम लेने से मोहन का डर वास्तव में चला गया। इस घटना ने शायद बापू की जीवन को बहुत प्रभावित किया है।
बापू भारत की समस्याओं का हल रामराज्य में खोजते थे। परन्तु् उनका रामराज्य (Ram Rajya) प्रजातंत्र का उत्कृष्ट रूप था। बापू ने 20 मार्च, 1930 को हिन्दी पत्रिका ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ (Ram Rajya) शीर्षक से एक लेख लिखा था जिसमें उन्होने कहा था – ‘रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा।
‘महात्मा ने 26 फरवरी, 1947 को एक प्रार्थना-सभा इसे और भी अधिक स्पष्ट। किया था – ‘जिस आदमी की कुर्बानी की भावना अपने संप्रदाय से आगे नहीं बढ़ती, वह खुद तो स्वार्थी है ही, वह अपने संप्रदाय को भी स्वार्थी बनाता है। ….मैंने अपने आदर्श समाज को रामराज्य का नाम दिया है। कोई यह समझने की भूल न करे कि रामराज्य (Ram Rajya) का अर्थ है हिन्दुओं का शासन। मेरा राम खुदा या गॉड का ही दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूं जिसका अर्थ है धरती पर परमात्मा का राज्य। …ऐसे राज्य की स्थापना से न केवल भारत की संपूर्ण जनता का, बल्कि समग्र संसार का कल्याण होगा।
अपनी मृत्यु से एक दिन पहले भी गांधी ने कहा था कि यदि वे किसी लंबी बीमारी या व्याधि के कारण शैय्या पर दम तोड़ें तो मान लिया जाए कि वे महात्मा नहीं थे, लेकिन यदि कोई बम विस्फोट हो या प्रार्थना सभा में जाते हुए उन्हें कोई गोली मारे और गिरते हुए उनके मुंह पर राम का नाम हो और मारने वाले के प्रति कोई कटुता न हो तब उन्हें भगवान का दास माना जाए।
बापू की इस 150 वीं जयंती पर एक ही कामना मन में है – हे राम ! सब को सन्मति दो भगवान् !