नागपुर/नवप्रदेश। BAMBOO : आदिवासियों के लिए सैकड़ों वर्षों से धातु के पारंपारिक गहने बनाने वाले गांव में हरा सोना, अर्थात बैंबू ने दखल दे दी है। महाराष्ट्र के नक्सल संवेदनशील गढ़चिरोली के अति दुर्गम कोयनगुड़ा में यह प्रेरक परिवर्तन हो रहा है। “द बैंबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र” के नाम से विश्व प्रसिद्ध बांस शिल्पी मिनाक्षी मुकेश वालके इस पहल की पुरोधा बनी है।
बैंबू डिजाइन में अभिनव प्रयोग और कुछ अनुसंधान करने वाली बैंबू लेडी मिनाक्षी ने बीते 5 वर्षों में अपने 10 से ज्यादा शिविरों से कमोबेश 1100 आदिवासी वंचित महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है। पश्चिम बंगाल की एक सेवाभावी संस्था खादी ग्रामोद्योग आयोग च्या माध्यमातून “देवराई कला ग्राम” में कई कलाओं का विकास कर रही है, जिसमें बांस कला का दायित्व मिनाक्षी ने उठाया है।
कोलकाता की राईगंज इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्स्पिरेशन अँड एम्पॉवरमेंट फॉर लाईवलीहुड जनरेशन इस संस्था की सुश्री अनन्या डे व सूबिर रॉय के प्रयासों को “देवराई” के सुरेश पुंगाटी सहयोग कर रहे है. गौरतलब है कि बैंबू लेडी मीनाक्षी ने वन विभाग के माध्यम से नक्सलग्रस्त इलाको के 25 युवा- युवतियों को गढ़चिरौली में ही 40 दिन निवासी प्रशिक्षण दिया था। इंग्लैंड की संसद हाऊस ऑफ कॉमन्स् में “IIW she inspires awards” प्राप्त करनेवाली देश की एकमात्र बैंबू कारीगर मीनाक्षी ने बांग्लादेश व भूटान की सीमा पर बसे दुर्गम गांव में जनवरी माह में ही 360 महिलाओं को बैंबू के गुर सिखाए है।
बदल रहा अनूठी परंपरा का गाव
महाराष्ट्र में केवल दो ही गावं है जहां “ओतकर” समुदाय रहता है। यह समुदाय आदिवासीं महिलाओं के लिए सदियों से धातू के पारंपारिक आभूषण बना कर देता आ रहा है। मूलतः यह समुदाय आदिवासीं नही है, परन्तु अब वह आदिवासीं बन कर जीने लगा है। यहीं नही इस समुदाय ने तो स्थानीय आदिवासियो के सरनेम तक अपना लिए है। यह विशेषता लिए कोयनगुडा यह गांव भौगोलिक आपदाओं और विकास की मुख्य धारा से थोड़ा वंचित रह गया है। बाढ़ में तीन चार महीने यह सम्पर्कहीन रहता है वही फोन भी बडी मुश्किल से लग पाता है। इस गाव की एक विशेषता यह भी कि ये विख्यात समाजसेवि डॉ. प्रकाश आमटे के हेमलकसा प्रॉजेक्ट से सटा है।
चुनौतियां लेनेवाली बांबु रागिणी
बांबू (BAMBOO) का कामही नही वरन देश के किसी भी कोने में जा कर आदिवासी- वंचीत महिलाओं को उसका कौशल सिखानेवाली बांबू लेडी मीनाक्षी वालके के कोयनगुड़ा में आने से हम उत्साहित है। सेवा सुविधाओ से दूर अति दुर्गम गाव में कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षक आना नहीं चाहता। एक महिला होकर इस चुनौती को मिनाक्षी ने स्वीकार किया, जिससे हम अभिभूत है, ऐसी प्रतिक्रिया RIIELG संस्था की सुश्री अनन्या डे ने दी। बहरहाल आनेवाले समय में यहां बैंबू से आशावादी परिवर्तन नजर आएगा ऐसा विश्वास भी उन्होने जताया।