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सूखे सरोवर में पूरी होगी गंगा दसहरा की रस्म

बूढ़ा सागर तालाब पटना के सौंदर्यीकरण का काम बरसों से अटका है
नवप्रदेश संवाददाता
बैकुण्ठपुर/पटना। आज कोरिया जिले के अलावा सरगुजा संभाग मे उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार गंगा दशहरा बंढती आबादी व आधुनिकता के दौर में विलुप्त होने के कगार पर है। इस त्यौहार के नाम पर अब केवल औपचारिकता ही रह गई है। त्यौहार को विलुप्ती की कगार पर पहुंचाने में जहां आधुनिकता का जुनून एक वजह है, तो वहीं स्थानीय प्रशासन की उदासीनता भी एक बड़ा कारण है।


विगत दो वर्षों से ग्रामीण इस सूखे तालाब में इस परंपरा को निभाने मजबूर हैं, वहीं निर्माण एजेंसी जिले में इस तालाब का सौंदर्यीकरण राशि वर्ष 2017में स्वीकृत होने के बावजूद भी अब तक पूरा नहीं करा सकी। स्वीकृत राशि एसईसीएल से अब तक न मिलने के अभाव में कार्य अब भी रुका हुआ सा है। पानी न होने से यहां पूजा की रसम करने आने वाले ग्रामीणों में अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की ओर काफी नाराजगी भी देखी जा रही क्यो की यहाँ पानी की व्यवस्था मात्र एक हैंड पंप पर निर्भर है जब कि यहा आने वाले ग्रामीणों की संख्या हजारों में है विदित है कि येष्ठ मास की दसवीं तिथि को मनाए जाने वाले गंगा दशहरा को लेकर अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा, एक समय था जब महीने भर पहले से उत्साह रहता था।
मेला लगता था, बांसुरी न केवल बच्चों के आकर्षण हुआ करते थे, बल्कि युवा व बुजुर्ग भी इसका लुत्फ उठाते थे। कोरिया जिले पे पटना ग्राम पंचायत में बूढ़ा सागर तालाब में पूरे दस दिन लोगों को हुजूम जुटता था।
गंगा दशहरा का है खासा महत्व
कोरिया के बहुतायत आदिवासी व अन्य तमाम समाज में गंगा दशहरा का खासा महत्व है। ग्रामीण महिलाएं आज के दिन कोरिया जिले के पटना सहर मे बूढ़ा तालाब में पहुंच कई नवजात शिशु के नाल को विसृजित करते हुए कामना करती है कि जिस ढंग से पूरे तालाब में कमल पुष्प विकसित है उसी तरह इस बच्चे का जीवन विकसित हो। दूसरी ओर जिस घर में वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए रहते है, वहां की महिलाएं कलश व मौर विसृजित कर गंगा मैया से यह कामना करती है कि नवविवाहित जोंडों की जिन्दगी में खुशियों का अंबार हो। परम्परा के मुताबिक घर की मुखिया महिला कलश विसृजन कर परिवार में सुख शांति की कामना करतीं हैं। इस दौरान आसपास के लोग जुटते थे, जो मंगल गीत गाकर न केवल खुशी का इजहार करते थे बल्कि माहौल को खुशनुमा बना देते थे। कुछ वर्षो से यह रस्म केवल औपचारिकता के रूप में होने लगी है।

रस्म अदायगी को भी पानी नहीं
आज यहां दशहरा मनाने पहुंची महिलाओं को जहां इस बात का मलाल था कि रस्मों को पूरी करने तालाब में पानी नहीें था। यहां पहुंची ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि वे लंबे अरसे से दशहरा मनाने आ रही है लेकिन बीच में तालाब इतनी गन्दगियों से भर गया था कि मन खिन्न हो जाता था वही कीचड़ में खड़े होकर पूजा करना पड़ा। दशहरा के रस्म को पूरी कराने वाले बैगा बताते हैं कि उनके पूर्वज भी यह काम करते थे और वे खुद गत 20 वर्षो से इस परम्परा का निर्वहन करा रहे है। उन्होंने बताया कि दशहरा का खासा महत्व है, मगर लुप्त होती परम्परा चिंता का विषय है।
एसईसीएल ने स्वीकृत किये 70 लाख
मिली जानकारी अनुसार इस तालाब के गहरीकरण व सौंदर्य करण के लिए ह्यद्गष्द्य मद से वर्ष 2017 में लगभग 70 लाख रुपये की स्वीकृति मिली जहा जिला प्रशासन ने ग्रामीण यांत्रिकी विभाग को निर्माण एजेंसी बनाया जहा विभाग द्वारा कार्य निविदा पे दिया गया व सबंधित फ र्म ने कार्य भी शुरु करा दिया, किन्तु संबंधित फ र्म को अब तक किये गए कार्य का भुगतान भी नहीं किया गया। जिससे कार्य कर रहे फ र्म ने कार्य को रोक दिया। इस वर्ष भी कार्य के पूरा होने की संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आ रही। वहीं अधिकारी अब तक एसईसीएल से पैसे नहीं मिलने की बात कह कर कार्य में विलम्ब होने की बात कह रहे हैं।
एसईसीएल ने नहीं दिये पैसे
वही इस संबंध में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग के प्रभारी अनुविभागीय अधिकारी रमोद चौधरी का कहना है कि निविदा के माध्यम से कार्य कराया जा रहा है। किंतु एस ई सी एल से स्वीकृत राशि का भुगतान निर्माण विभाग को अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। जिससे सबंधित फ र्म ने कार्य को पैसों के अभाव में रोक दिया है। यदि समय रहते भुगतान हो जाता तो कार्य में इतना विलम्ब नहीं होता । कुछ कार्य ही अब शेष बचा है, जिसे जल्द ही पूरा करा लिया जायेगा।

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