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बदहाल बांस कारीगरों को चाहिए सहयोग का उजाला,दो साल से कर रहे संघर्ष

Bad bamboo artisans need light of cooperation, struggling for two years

Bamboo Art

Bamboo Art : उत्सव-त्योहारों के लिए बना रहे कलाकृतियां

मुकेश वालके, चंद्रपुर। Bamboo Art : हाल ही में विश्व बांबू दिवस मनाया गया। बीते करीब दो वर्षों से कोरोना महामारी के साए में आर्थिक संघर्ष कर रहे बांस कारीगरों को सहयोग के उजाले की आज दरकार है। बांस कारीगरों ने डेढ़ महीने बाद आने वाली दिवाली की पृष्ठभूमि पर विविध उपयुक्त,आकर्षक और सजावटी सामग्री बनाना शुरू कर दिया है।

हमे भी ईको फ्रेंडली दिवाली की योजना बना कर उन्हें सहयोग का उजाला देने की जरूरत है। इससे प्रकृति व पर्यावरण के संवर्धन के साथ ही जंगलों के बीच रहनेवाले आदिवासी, वंचित कारीगरों को भी मदद मिल सकेगी। लॉक डाउन में इन बांस कारीगरों पर भुखमरी की नौबत आई है।

दुनिया के 6 देशों में बांस की ईको फ्रेंडली राखियां एक्सपोर्ट कर चुकी विश्व प्रसिद्ध सामाजिक उद्यमी मीनाक्षी मुकेश वालके बताती हैं कि अकेले महाराष्ट्र में करीब 9 लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए है। तेलंगाना, कर्नाटक और अन्य क्षेत्र में और भी गंभीर स्थिति है। बांस से आजीविका विकास का कार्य करनेवाली महिला सशक्तिकरण कार्यकर्ता मीनाक्षी मुकेश वालके का कहना है कि कम से कम उत्सव-त्योहारों के दौर में राष्ट्र प्रेमी व स्वदेशी का नारा लगानेवाले लोग, संस्था व संगठनों को यह पहल करना होगा।

Bamboo Art

इस वर्ष होगी ये खास

इस वर्ष उत्सव-त्यौहारो के दौर में बांबू की श्री गणेश मूर्ति, लक्ष्मी पूजा की थाली, मोमबत्ती (टी लाईट कैंडल होल्डर) के दीए, गहने, गिफ्ट बॉक्स, ज्वेलरी बॉक्स, लैंटर्न, लैंपशेड और फोल्डिंग लैंप ऐसी बांबू की कई खास वस्तुएं होंगी।

लुभाएगी बांबू की तोरण पताका

हमारे उत्सव-त्योहारों पर भी विदेशी उत्पादों की पैठ कम नहीं। ऐसे में प्लास्टिक की सजावटी तोरण-पताका 250 से 550 रुपयों में उपलब्ध है। ये पर्यावरण के भी हित में नहीं है। ऐसे में देश में पहली बार ही बांबू की तोरण-पताका इजाद की गई है। बांबू फ्रेंडशिप बैंड बनानेवाली मीनाक्षी मुकेश वालके ने ही इस वर्ष तोरण का आविष्कार किया है। मीनाक्षी का कहना है कि ये पूरी तरह ईको-फ्रेंडली व पुनर्प्रयोग वाले है और दिखते भी बहुत आकर्षक है।

Bamboo Art

तो चाइना से कैसे होगा मुकाबला

जानकार बताते हैं कि भारत में मूल कारीगर अंधेरे में रह जाते है तो उनके नाम पर काम करनेवाले व्यापारी तथा उनकी तथाकथित संस्थाएं अपना नाम रोशन कर लेते है। कथित रूप से स्वदेशी का नारा लगानेवाले लोग मेहनतकश कारीगरों से कौड़ियों के दाम में उत्पाद लेने का प्रयास करते है। समाजसेवी सुभाष शिंदे का कहना है कि कारीगरों से गंभीर मोल भाव किया जाता रहा तो हम विदेशी बाजार को खत्म कैसे करेंगे? यह तो उन्हें और बढ़ा देगा।

अंतर्राष्ट्रीय पटल पर आदिवासी क्षेत्र की मुहर

इस वर्ष कनाडा की इंडो कॅनडीयन आर्ट्स एंड कल्चर इनिशिएटिव संस्था के ‘वुमन हीरो’ पुरस्कार से सम्मानित मीनाक्षी मुकेश वालके वंचित तबके की गरीब व आदिवासी लड़किया व महिलाओं को मुफ्त प्रशिक्षण देकर रोजगार मुहैया कराती है। बेंगलुरु की बांबू सोसायटी ऑफ इंडिया की सदस्य मीनाक्षी वालके ने 2018 में केवल 50 रुपयों में सामाजिक गृहोद्योग अभिसार इनोवेटिव की स्थापना की थी। उनकी राखियां 6 यूरोपिय देशों में पहुंची है। मीनाक्षी ने प्लास्टिक मुक्त उत्सव-त्यौहारों के लिए अपील भी की है।

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