डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। Ayodhya Dispute : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे कुख्यात आतंकी संगठनों से करने का विवाद बढ़ता जा रहा है। सलमान खुर्शीद ने इस किताब में अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का अपने हिसाब से विश्लेषण किया है। दरअसल, हिंदुत्व के नाम पर आरएसएस और भाजपा की लगातार बढ़ रही स्वीकार्यता ने पूरे देश के सियासी दलों की नाक में दम कर रखा है।
नेताओं से लेकर कथित बुद्धिजीवियों और वामपंथियों का एक बड़ा समूह इसी मौके की तलाश में रहता है कि उन्हें किसी भी तरह से हिंदुत्व की लानत-मलानत करने का कोई चांस मिल जाए। तो, सलमान खुर्शीद की किताब (Ayodhya Dispute) को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने ये किताब एक नेता नहीं, बल्कि मुसलमान के नजरिये से लिखी है। वैसे, इन सबके बीच सलमान खुर्शीद की एक और किताब सुर्खियां बटोरने लगी है, जिसमें उन्होंने हिंदुओं के साथ ही सिखों को भी गुनाहगार कहा है।
सलमान खुर्शीद के बाद अब पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने एक बेमानी बहस छेड़ दी है। बेमानी इसलिए है कि जिन घटनाओं और चेहरों का संबंध 500-600 साल पुरानेे कालखंड से हो और आज उनकी प्रासंगिकता भी कुछ न हो, मणिशंकर ने उनका जिक्र किया है। उन्होंने मुगल शासकों को ‘अपना’ माना है। उनका दावा है कि मुगलों ने धर्म पर अत्याचार नहीं किए और न ही धर्मान्तरण कराए। मुगल शासक अकबर ने तो हिंदुस्तान पर 50 साल राज किया। बाबर सिर्फ 4 साल भारत में रहा। उसे भारत पसंद नहीं आया।
मणिशंकर यह भी दावा कर रहे हैं कि मुगलों ने 666 साल तक हिंदुस्तान पर राज किया। उनके बाद 1872 में ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे देश में पहली बार जनगणना कराई, तो मुस्लिम आबादी करीब 24 फीसदी थी और हिंदू 72 फीसदी थे। आज तक मुस्लिम आबादी भारत में बढ़ी नहीं है, बल्कि घटी है और हिंदू 80 फीसदी से अधिक हैं। यदि मुगलों ने धार्मिक अत्याचार किए होते और जबरन धर्मान्तरण कराए होते, तो मुसलमान आबादी का आंकड़ा कुछ और होना चाहिए था। मणिशंकर गर्व महसूस करते हैं कि केंद्रीय मंत्री और सांसद के तौर पर वह दिल्ली के अकबर रोड वाले सरकारी आवास में रहे। उनकी कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय भी अकबर रोड पर है। उन्हें अकबर, महाराणा प्रताप या शाहजहां के नामों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
मुगलों ने भारत को ‘अपना’ समझा और हमें लालकिला, कुतुबमीनार, ताजमहल सरीखे भवन-निर्माण के अद्भुत नमूने दिए। मुगलों ने ही हमें लिबास, खान-पान और कला संबंधी लियाकत दी। हम अपनी 10,000 साल प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में क्या भूखे, नंगे और जंगली थे? हमारे ऐतिहासिक मंदिरों की नक्काशी, वास्तु-कला और शिल्प विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल नहीं हैं? दरअसल इन तमाम कथनों और दावों का आज क्या औचित्य है? 14-15वीं सदी को आज 2021 में दोहराने के पीछे मंसूबे क्या हो सकते हैं? क्या अयोध्या के भव्य राम मंदिर की सियासी काट ढूंढी जा रही है?
क्या उप्र चुनावों में कांग्रेस हिंदुत्व के प्रभाव और धु्रवीकरण को कुंद करके मुस्लिम वोट बटोरना चाहती है? क्या आज का प्रगतिशील मुसलमान भी बाबर, हुमायूं, अकबर और औरंगजेब को ‘अपना’ मानता है? दरअसल कुछ ऐतिहासिक घटनाएं साक्ष्य के रूप में हमेशा हमारे सामने मौजूद रही हैं, जो तुरंत साबित करती हैं कि मुगल ‘अपने’ थे अथवा आक्रांता थे? महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच 1575 के करीब हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा गया था।
इतिहास में दर्ज है कि युद्ध से पहले ही करीब 30,000 क्षत्राणियों ने जौहर किया था। यानी जिंदा आग में जलकर भस्म हो गई थीं। हजारों गैर-मुसलमानों की हत्याएं कराई गईं। क्षत्राणियां भी इनसान थीं। उन्हें आभास था कि अकबर और उसके सैनिक उनकी इज्जत को नहीं छोड़ेंगे। ये सब विदेशी और तटस्थ इतिहासकारों के ब्योरे हैं। उस दौर में कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी कोई भी नहीं था।
क्या कोई ‘अपना’ इतने बड़े स्तर पर कत्लेआम मचा सकता है? 14 नवंबर, 1675 को सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर जी का औरंगजेब ने गला कटवा दिया था। गुरु धर्मान्तरण के खिलाफ थे। उन्हीं की याद में शीशगंज गुरुद्वारा बनाया गया है। सिखों के ही गुरु अर्जुन देव जी की हत्या किसने कराई? मुगल सुल्तान औरंगजेब ने ही! तो इन मुगल शासकों को किस आधार पर ‘अपना’ माना जा सकता है? उस दौर का इतिहास लिखने वाले अमरीकी विद्वानों ने कहा है कि मानवीय सभ्यता का सबसे खून-खराबे वाला दौर मुगलों का था, जो भारत में उन्होंने बिताया। वे विदेशी थे, हमलावर और आक्रांता थे। चूंकि भारत ‘सोने की चिडिय़ा’ कहलाता था, लिहाजा लुटेरों ने जमकर उसे लूटा और स्वर्णिम संसाधन विदेश पहुंचाते रहे।
सलमान खुर्शीद (Ayodhya Dispute) अपनी इस्लामिक धर्मांधता को 1986 में ‘एट होम इन इंडिया: अ रीस्टेटमेंट ऑफ इंडियन मुस्लिम्स’ लिखकर साबित कर चुके हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ऐसी जहर बुझी और धर्मांध सोच वाले नेताओं को आज भी हमारे देश की राजनीति में एक सर्वमान्य नेता के तौर पर जाना जाता है। उस पर विडंबना ये है कि खुर्शीद के इन विचारों पर हंगामा होने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी उनका परोक्ष रूप से समर्थन करते हुए हिंदू धर्म और हिंदुत्व में फर्क बताने उतर आए हैं।
राहुल गांधी के हिसाब से हिंदू धर्म में कहीं भी मुस्लिमों और सिखों के खिलाफ हिंसा को सही नहीं बताया गया है। लेकिन, हिंदुत्व में यह सब जायज है। कहना गलत नहीं होगा कि राहुल गांधी का ये बयान कहीं न कहीं हिंदुत्व पर सलमान खुर्शीद की सोच का समर्थन करता हुआ नजर आता है।