रायपुर/नवप्रदेश। Dr.Shobha Koser : ईमंच द्वारा समय-समय पर विभिन्न कला रूपों में प्रतिष्ठित व्यक्तियों को शामिल करके युवाओं को जोड़ने का प्रयास पिछले एक साल से चल रहा है। जिसमें ऑनलाइन प्रतियोगिता सहित विभिन्न विधाओं पर विस्तृत चर्चा का आयोजन किया जाता है। ईमंच ने कोरोना संकट के दौरान युवाओं का काफी हौसला भी बढ़ाया है।
इसी कड़ी में संगीत नाटक अकादमी -2017 अवॉर्डी डॉक्टर शोभा कोसर (Dr. Shobha Koser) ईमंच के लाइव टॉक शो में शामिल हुई। उल्लेखनीय है कि डॉक्टर शोभा कोसर जयपुर घराने की कथक कलाकारा, गुरु, शिक्षिका,लेखिका और कोरियोग्राफर भी है। डॉ शोभा कोसर देश की स्वतंत्रता के बाद उत्तर-पश्चिम क्षेत्र की एकमात्र पेशेवर कथक नृत्यांगना रही हैं। डॉ.शोभा जयपुर घराने के पारंपरिक कथक को समृद्ध करने और अपनी मौलिक तकनीकों को कमजोर किए बिना उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए जानी जाती हैं और अपना सम्पूर्ण जीवन नृत्य को समर्पित कर दिया है।
डॉ शोभा कोसर के साथ ईमंच फाउंडेशन के संस्थापक मदन मोहन उपाध्याय ने कथक नृत्य की विभिन्न विधाओं पर विस्तृत चर्चा की। चर्चा के दौरान डॉ शोभा कोसर ने बताया कि वो गुरु-शिष्य परंपरा की सदैव पक्षधर रही हैं, साथ ही वो नृत्य प्रदर्शन कलाओं में पवित्रता की प्रबल समर्थक हैं, और उनका मानना है कि नृत्य शुद्धता को हर कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए। नृत्य के वास्तविक एवं पवित्र स्टाइल से कभी भी छेड़ छाड एवं खिलवाड़ नहीं होना चाहिए ।
डॉ. शोभा (Dr. Shobha Koser) ने बताया की जब उनकी शादी लगभग 16-17 वर्ष की अल्प आयु में ही हो गयी थी परंतु नृत्य के जुनून को ज़िम्मेदारियाँ कभी रोक नहीं पायीं। जिसका परिणाम हुआ की आज पंजाब एवं हरियाणा में अधिकतर कथक कलाकार एवं गुरु डॉ.कोसर के ही शिष्य हैं।
चर्चा में उन्होंने बताया कि जब चंडीगढ़ में कथक नृत्य केंद्र की शुरुआत करनी चाही तो उस समय उन्हें यह कहा गया था कि यहां आप कल्चर की नहीं बल्कि एग्रीकल्चर की बात कीजिए। फिर भी हार नहीं मानी और अपने पति के साथ मिलकर प्राचीन कला केंद्र (ओपन यूनिवर्सिटी) की स्थापना की और आज लगभग 3700 केंद्रों पर 3.50 लाख से ज़्यादा शिक्षार्थी गीत संगीत की विभिन्न विधाओं की शिक्षा ले रहे हैं ।
डॉक्टर शोभा ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया की एक कलाकार का जीवन हमेशा नयी नयी चुनौतियों से भरा होता है। एक बार पुणे में कार्यक्रम करना था पर किसी कारण तबला वादक और गायक दोनो नहीं पहुंच सके और उसी समय पैर में चोट भी लग गई परंतु कार्यक्रम तो करना ही था। कार्यक्रम किया और इतना अच्छा रहा की जीवन का सबसे यादगार प्रस्तुति रही। इस दौरान दर्शक इतने भावुक हो गए की कुछ देर तक पूरा हॉल शांत हो गया लोग ताली बजाना तक भूल गए।
दूसरा अनुभव साझा करते हुए डॉक्टर शोभा भावुक हो गईं और बतायीं की एक बार मलेशिया में कार्यक्रम के लिए गई थी और वहाँ जाकर पता चला की छोटी बहन के पति का आकस्मिक निधन हो गया, पर इसका असर कार्यक्रम पर पड़ने नहीं दिया। कार्यक्रम समाप्त करके वापस 17 दिन बाद विधवा बहन से मिल पाई।
डॉक्टर कोसर ने बताया की उन्होंने भारत समेत विश्व के अनेक देशों में कई प्रदर्शन किए हैं। डॉ.शोभा एक प्रसिद्ध कोरियोग्राफर भी हैं, आम्रपाली, कामायनी, कुमार सम्भव, चंद्रलेखा, चांदना, गीत-गोविंदा, मेघदूता, सागर-सलिला, पंचवटी, उर्वशी मिलन आदि का निर्देशन कर चुकी हैं, जिन्हें व्यापक रूप से आज भी सराहा जाता है।
डॉ कोसर ने कथक के सिद्धांत और व्यावहारिक दोनों पहलुओं पर “रत्या अभिज्ञान” नामक पुस्तक भी लिखी है। उन्होंने नए कलाकारों के लिए कहा की यदि आपको एक अच्छा कलाकार बनना है, तो आपको अपने समय और दिनचर्या के लिए वरीयता निर्धारित करना आवश्यक है, कुछ भी हो आपको प्रतिदिन एक निश्चित समय एवं अवधि के लिए प्रैक्टिस करना ही पड़ेगा।