प्रेम शर्मा। Assembly Elections : देश के पॉच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने कमर कस ली है। देश में कोरोना काल की पीड़ा, बेरोजगारी और चरम पर मंहगाई के कारण जनता का भाजपा के लाख विकासकारी और सबका साथ सबका विकास के दावे के प्रति जनता में बढ़ रहे विरोध का फायदा विपक्ष को मिलने से पहले ही विपक्ष द्वारा “जिन्ना प्रेम” कांग्रेस का पहले “सिद्धु प्रेम” और अब .सलमान खुर्शीद की पुस्तक ने प्रियंका गांधी की सभाओं की भारी भीड़ और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के उमड़े युुवाओं की फौज का उत्साह कम कर दिया है।
पिछले एक वर्ष से जिस तरह से भाजपा की लोकप्रियता का कम होनी शुरू हुई थी उसका परिणाम हालिया उपचुनाव में देखा जा चुका है। देश के 14 राज्यों में 3 लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव परिणामों का लोग बड़ी बेसब्री के साथ इंतजार कर रहे थे, क्योंकि इन नतीजों से मुल्क के सियासी मिजाज में तब्दीली की उम्मीद जताई जा रही थी। नतीजे बिल्कुल उम्मीदों के मुताबिक सामने आए हैं।
चुनाव विश्लेषकों ने तो यहां तक भविष्यवाणी कर दी थी कि चुनाव परिणाम के बाद कुछ राज्यों में सत्ता समीकरण बदलने की भी सुगबुगाहट दिख सकती है, हालांकि हालिया चुनाव नतीजों से ऐसा तो कुछ होता नहीं दिख रहा है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस परिणाम के बाद यह कहा जा सकता है कि हिंदी पट्टी में कांग्रेस के लिए अच्छी तो बीजेपी के लिए बुरी खबर रही।
उपचुनाव के नतीजों के मुताबिक, राजस्थान और हिमाचल में कांग्रेस पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। हालांकि बिहार में कांग्रेस को गठबंधन तोडऩे का नुकसान उठाना पड़ा। कर्नाटक उपचुनाव के नतीजों में कांग्रेस और बीजेपी को एक-एक सीट हासिल हुई। इन चुनाव परिणामों के आने के बाद विपक्ष में उत्साह का संचार हुआ और विपक्षी दलों ने पॉच राज्यों होने वाले चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। इस बीच सपा और कांग्रेस बयानों के चलते जो एक नया माहौल बना और उस पर भाजपा ने तिलस्मी जाल बिछाया उसका खामियाजा तेजी से पायदान पर आगे बढ़ती कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भुगतना पड़ सकता है।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में जहां भाजपा की सरकारें हैं, वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। निर्वाचन आयोग के एक जनवरी, 2021 के आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में लगभग 14.66 करोड़ मतदाता हैं। वहीं, पंजाब में दो करोड़ से अधिक मतदाता हैं। उत्तराखंड में 78.15 लाख मतदाता पंजीकृत हैं। वहीं, मणिपुर में 19.58 लाख और गोवा में 11.45 लाख मतदाता हैं। पांचों राज्यों में कुल लगभग 17.84 करोड़ मतदाता हैं।
ऐसे में देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के लिए सभी पांच राज्य अहम हैं। जिस तरह से देखा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी चुनावी राज्यों में अंतर्कलह से जूझ रही है। उपचुनाव परिणाम और मंहगाई और बेरोजगारी के चलते भाजपा में भी हालात ठीक नहीं है। चुनावी राज्यों में भाजपा कई परेशानी का सामना कर रही है। भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तरप्रदेश का लखीमपुर खीरी बड़ी चिंता है। जिस तरह 3 अक्टूबर को लखीमपुर में किसानों की मौत के बाद बवाल ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां लखीमपुर को छोडऩे के मूड में नहीं है।
ऐसे में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए ये बड़ी परेशानी साबित हो सकती है। वहीं, पंजाब से लेकर छत्तीसगढ़ राज्यों में कांग्रेस के माथे पर शिकन है। सबसे पहले बात उत्तरप्रदेश की। यहां योगी आदित्यनाथ सरकार 3 अक्टूबर से पहले फ्रंच फुट पर थी, लेकिन लखीमपुर खीरी कांड ने बीजेपी को बैकफुट में कर दिया है। अब कांग्रेस पार्टी का हर मंच पर विरोध करना दिखाता है कि वह इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में भुनाना चाहती है। जेल मे मौते होने वाला मुद्दा भी यूपी में गरमाया जा रहा है। मणिपुर की बात करें तो यहां भाजपा शासन कर रही है लेकिन राज्य इकाई में गंभीर अंदरूनी कलह चल रहे हैं।
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को दो दिवसीय मणिपुर दौरे और प्रदेश के मुखिया एन बीरेन सिंह, मंत्री विश्वजीत सिंह और मणिपुर भाजपा प्रमुख ए शारदा देवी बुलावा, चुनाव, पहले मणिपुर भाजपा के भीतर बीरेन सिंह के खिलाफ असंतोष इस बॉत का संकेत है कि मणिपुर में भाजपा की स्थिति ठीक नही है। उत्तराखंड में भी भाजपा के लिए शिकन कम नहीं है। यहां हैरत की बात ये है कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में भाजपा ने 70 में से 57 सीटें जीती, लेकिन जिस तरह से भाजपा हाई कमान ने तीन महीने के भीतर प्रदेश में तीन मुख्यमंत्री बदल दिए, उससे भाजपा के अंतर्कलह की कलई खुलती है।
पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत, फिर तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर सिंह धामी प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं। उत्तराखंड भाजपा इकाई में असंतोष की खबरों के बीच ऐसी अटकलें हैं कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में अपने आधे विधायकों को मैदान में नहीं उतारेगी। इन्हीं खबरों के बीच आज कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने अपने विधायक बेटे के साथ घर वापसी करते हुए कांग्रेस में री एंट्री ली। रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा के उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत गौतम और महासचिव (संगठन) बीएल संतोष के आंकलन में लगभग 25 विधायकों को चुनाव में नहीं उतारने की तैयारी है। इससे निसंदेह कांग्रेस फायदा ले सकती है।
पंजाब में कांग्रेस का हाल तो जगजाहिर है। लेकिन भाजपा के लिए जश्न मनाने जैसा कुछ माहौल नहीं है। भाजपा अपने पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बिना पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ेगी, जिसने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया है। कृषि कानूनों को लेकर अकाली दल भाजपा से नाराज चल रही है। जिसके विरोध में हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्री पद तक छोड़ दिया था।