Assembly Elections in Rajasthan : नेतृत्व के मुद्दे पर असमंजस में फंसी भाजपा

Assembly Elections in Rajasthan : नेतृत्व के मुद्दे पर असमंजस में फंसी भाजपा

Assembly Elections in Rajasthan: BJP stuck in confusion on the issue of leadership

Assembly Elections in Rajasthan

रमेश सर्राफ। Assembly Elections in Rajasthan : राजस्थान में विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है। मगर भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व के मुद्दे को लेकर लगातार असमंजस में फंसी नजर आ रही है। राजस्थान के आम मतदाताओ को भाजपा से जोडऩे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार राजस्थान के दौरे कर रहे हैं। इसी दौरान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व राजस्थान भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बना कर प्रदेश की सक्रिय राजनीति से दूर भेज दिया गया है। राजस्थान में अभी विधानसभा का सत्र चल रहा है। सत्र के दौरान ही विपक्ष के नेता को हटाकर भाजपा आलाकमान ने बता दिया है कि पार्टी राजस्थान को लेकर पूरी तरह से गंभीर है। केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश में भाजपा को नए सिरे से पुनर्गठित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसी के चलते कटारिया को राज्यपाल बनाकर असम भेजा गया है।

कटारिया के राज्यपाल बनने से खाली हुए नेता प्रतिपक्ष के पद पर भी अभी तक किसी का मनोनयन नहीं हुआ है। हालांकि नेता प्रतिपक्ष बनने की रेस में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, कालीचरण सर्राफ, नरपत सिंह राजवी, जोगेश्वर गर्ग, अनिता भदेल सहित कई वरिष्ठ विधायक शामिल है। मगर अंतिम फैसला भाजपा आलाकमान को ही करना है। आलाकमान जिसका नाम तय करेगा वही नेता प्रतिपक्ष बनेगा। हालांकि नेता प्रतिपक्ष के पद पर भाजपा आलाकमान की पसंद के विधायक का ही चयन किया जाएगा। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि अभी भाजपा आलाकमान जिसे नेता प्रतिपक्ष बनाएगा। वही अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करेगा।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व संगठन महासचिव बीएल संतोष अपनी राजस्थान यात्रा के दौरान लगातार कह चुके हैं कि पार्टी राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम व चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी के सभी नेता सामूहिक रूप से एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनायेंगे। चुनाव के बाद विधायकों द्धारा नए नेता का फैसला किया जाएग। भाजपा आलाकमान की यही बात वसुंधरा राजे व उनके समर्थकों को खटक रही है। उनको लगता है कि जिस तरह से एन चुनाव के पहले गुलाबचंद कटारिया को सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया गया। उसी तरह से उनको भी पार्टी में पावर लेस किया जा सकता है। इसी चिंता को लेकर वसुंधरा राजे समर्थक खेमा बार-बार उनको नेता घोषित कर उनके नेतृत्व में चुनाव लडऩे की मांग कर रहा है। हालांकि भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे व उनके समर्थकों की मनसा से पूरी तरह वाफिक है। इसीलिए किसी एक नेता के नेतृत्व में चुनाव लडऩे से कतरा रही है।

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी गुजरात की तर्ज पर बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा चल रही है। इससे लंबे समय से राजनीति में सक्रिय बहुत से वरिष्ठ नेताओं को अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंता सता रही है। अपनी राजनीतिक विरासत को बचाए रखने के लिए आलाकमान के राडार पर आए हुए कई भाजपा नेताओं ने तो अंदर खाने दूसरे दलों से भी टिकट लेकर चुनाव लडऩे की योजना पर काम शुरू कर दिया है। नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री संदीप पाठक तो खुलकर कह रहे हैं कि हम दूसरे दलों के प्रभावशाली नेताओं का पार्टी में स्वागत करेंगे।

कुछ दिनों पहले ही डूंगरपुर से भाजपा के विधायक रहे देवेंद्र कटारा भी आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं। हालांकि भाजपा ने 2018 के चुनाव में खराब परफॉर्मेंस के चलते देवेंद्र कटारा का टिकट काट दिया था। तब कटारा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर मात्र 8633 वोट ही प्राप्त किए थे। ऐसे में उनका विशेष जनाधार नहीं बचा है। लेकिन आम आदमी पार्टी तो ऐसे ही नेताओं से अपने संगठन को मजबूत करने में लगी हुई है। राजस्थान भाजपा में इस समय कई गुट बने हुए हैं। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पृष्ठभूमि के नेता हैं और प्रारंभ से ही भाजपा से जुड़े हुए हैं। संभ्रांत छवि के कारण उनकी प्रदेश में शालीन छवि मानी जाती है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष होने के चलते पूरा संगठन ही उनका है। मगर प्रदेश की राजनीति में इस वक्त उनका गुट बहुत मजबूत माना जा रहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पिछले विधानसभा चुनाव में हारने के बाद लगातार पार्टी में हाशिए पर चली गई है। वसुंधरा राजे फिर से मुख्यधारा में आकर पार्टी की कमान संभालने का प्रयास कर रही है। मगर आलाकमान उन्हें तवज्जो देने के मूड में नहीं लग रहा है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री व जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद माने जाते हैं। इसीलिए उन्हें राजस्थान की राजनीति में तेजी से आगे बढ़ाया गया है। उन्हें वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर भी प्रस्तुत किया जा रहा है। मगर संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी घोटाले में उनका नाम आने से उनकी छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला है।

उन्होंने शेखावत पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि संजीवनी घोटाले में इनके परिवार के लोग शामिल हैं। गजेंद्र सिंह के पिता, इनकी माता जी, इनकी पत्नी, इनके साले पांचों लोग उसमें शामिल हैं। गहलोत ने कहा कि जिस व्यक्ति के ऊपर भयंकर आरोप हैं। प्रधानमंत्री ने ऐसे आदमी को मंत्री बना रखा है। प्रधानमंत्री उनकी जांच करें। गहलोत ने कहा कि संजीवनी घोटाले में पीडि़तों में 80 परसेंट राजपूत हैं। मैंने भगवान सिंह रोलसाबसर से बात की है। वे गजेंद्र सिंह शेखावत के गुरु हैं। मैंने कहा भगवान सिंह जी इसे समझाओ कि पैसा वापस लौटाए। विदेशों के अंदर पता नहीं कितना पैसा लगा रखा है? इथियोपिया, ऑस्ट्रेलिया और भी पता नहीं कितने देशों में गजेंद्र सिंह का पैसा लगा हुआ है।

केंद्रीय मंत्री को यह बात क्लियर करनी चाहिए। क्यों नहीं वह ईडी को जांच दिलवा रहे। गहलोत ने कहा कि सीबीआई तो गजेंद्र सिंह और इन लोगों की जेब में है। संजीवनी क्रेडिट कॉपरेटिव सोसाइटी के घोटाले में गहलोत ने गजेंद्र सिंह पर निशाना साधते हुए कहा- आप खुद केंद्रीय मंत्री हैं। यदि आप बेकसूर हैं तो गरीबों का पैसा वापस दिलवाने के लिए आगे क्यों नहीं आते?
अपनी राजस्थान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 4 महीनों पहले आबू रोड के मानपुर धाम का दौरा किया था। उसके बाद बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम, भीलवाड़ा के मालासेरी धाम का दौरा किया। फिर दोसा में एक्सप्रेस हाईवे का उद्घाटन करने आए।

यह सभी क्षेत्र आदिवासी, गुर्जर, मीणा बहुलता वाले क्षेत्र हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां कमजोर रही थी। उसी की भरपाई करने के लिए प्रधानमंत्री स्वयं दौरे कर रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री द्वारा इन धार्मिक स्थलों के विकास के लिए कोई घोषणा नहीं किए जाने से लोगों में निराशा है। फिलहाल तो प्रदेश में भाजपा के नेता अपना वर्चस्व जमाने के चक्कर में एक दूसरे को छोटा दिखा रहे हैं। ऐन चुनाव के वक्त इस तरह की हरकतों से भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है। मगर इन सब से अनजान भाजपा के नेता एक दूसरे की टांग खिंचाई में ही लगे हुए हैं। जो किसी कैडर बेस पार्टी के लिये अच्छी बात नही मानी जा सकती है।

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