रायपुर/नवप्रदेश। Arun Vora : छत्तीसगढ़ के दुर्ग विधायक अरूण वोरा अपने राजनीतिक जीवन का सबसे कठिन चुनाव लडऩे जा रहे हैं। इस बार बाबू जी अर्थात् उनके स्व. पिता मोतीलाल वोरा की गैरमौजूदगी में होने वाले इस चुनाव में अरूण की भूमिका अभिमन्यु जैसी होगी। हश्र क्या होगा यह समय के गर्भ में है। 1993 में पहली बार विधायक बने अरूण वोरा पर उनके ही सिपहसालारों का आरोप है कि उन्होंने भरोसा करना जब छोड़ ही दिया है तो हमने भी उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया है। 1993 में जब अरूण चुनाव लड़ रहे थे तब स्व. मोतीलाल वोरा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे। उनके प्रभाव से अरूण पहली बार जीत तो गए लेकिन इसके बाद लगातार तीन चुनाव 1998, 2003 और 2008 में हार गए। 2013 और 2018 में जीते तो उनसे उनके सारे अपने दूर होते चले गए।
दरअसल, दुर्ग जिले की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग खूब काम करती थी और अब भी करती है। जिला कांग्रेस कमेटी के वर्षाे तक अध्यक्ष रहे वासुदेव चंद्राकर से वोरा की पटरी कभी भी नहीं बैठी। लेकिन ये मोतीलाल वोरा की सोशल इंजीनियरिंग का कमाल ही था वे एक बार भी दुर्ग विधानसभा चुनाव नहीं हारे। अलबत्ता उनके चुनावों की कमान पिछड़े वर्ग के नेताओं के हाथ में रहा करती थी। 2008 से पहले दुर्ग विधानसभा में वैशाली नगर और दुर्ग ग्रामीण का अधिकांश क्षेत्र हुआ करता था।
2008 के बाद नए परिसीमन में दुर्ग नगर पालिक निगम की 40 वार्डो की सीमा रही उसके बावजूद 2008 में अरूण चुनाव हार गए थे। आने वाला चुनाव अरूण के लिए बेहद कठिन है। दुर्ग शहर में राजनीति करने वाले सारे वरिष्ठ नेता प्रदेश स्तरीय राजनीति करने लगे हैं। महापौर धीरज बाकलीवाल के पीछे अरूण ने जासूस लगा रखे है। उनके दोनों पुत्र युवा कांग्रेस की राजनीति के साथ ही नगर पालिक निगम के ठेकेदारों को काम बांट रहे है। नतीजा ये है अरूण के लिए या कांग्रेस के लिए काम करने वाले लोग उनसे दूर होते जा रहे हैं। हालांकि बीजेपी के पास शहर में दमदार चेहरा तो नहीं है लेकिन दुर्ग शहर की तासीर यह है कि यहां कामकाज पर वोट नहीं पड़ते। यहां वोट पड़ते है ‘ये नहीं चाहिए’। कमोबेश इसी तरह का माहौल शहर में बना हुआ है। इसलिए यह अरूण वोरा के लिए कठिन चुनाव है, कांग्रेस के लिए नहीं।
शहर के नामचीन लोग : राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष आरएन वर्मा, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष एवं प्रदेश कांग्रेस के सचिव राजेंद्र साहू, नगर पालिक निगम के सभापति राजेश यादव, पूर्व विधायक प्रदीप चौबे, पार्षद मदन जैन के अलावा घोषित-अघोषित कुछ ऐसे स्वनामधन्य नेता है, जिन्हें ऐसा लगता है कि अरूण के कारण उनका पोलिटिकल कैरियर और केलीबर कील हो रहा है। ये लोग कांग्रेस की बात करते हैं अरूण (Arun Vora) की नहीं।