विजय मिश्रा अमित, पूर्व अति.महाप्रबंधक (जन.) । Art Literature : छत्तीसगढ़ को कला-साहित्य की दृष्टि से समृद्धि धरा के रूप में राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय जगत में ख्याति मिली हुई है। यहां के कलाकार साहित्यकार, चित्रकार, मूर्तिकार , पत्रकार अपने परिश्रम और अपने दमखम पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में सदैव आगे रहे हैं। सरकार की दया की दरकार उन्हें बहूत ज्यादा नहीं रही है। लेकिन सदियों से यह बात चली आ रही है कि, राज्याश्रय प्रप्त होने पर कला- संस्कृति- साहित्य को बढ़ावा मिलता रहा है।
छत्तीसगढ़ बनाने में कलाकारों की कांतिकारी भुमिका
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले यहां के कलाकारों, साहित्यकारों (Art Literature) और विचारकों ने नया राज्य बनाने में अपनी क्रांतिकारी भूमिका का निर्वहन बखूबी किया है , फलस्वरूप राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की कला- संस्कृति को निसंदेह बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।राज्याश्रय प्राप्त होने के बाद यहां की अनेक लुप्त होती कला- संस्कृति तीज- त्यौहार, खेलों को भी जबरदस्त प्रोत्साहन मिला है, किन्तु पिछले दो सालों से कोरोना वायरस के संक्रमण में बहुत से निर्धन कलाकार काल कवलित हो गए ।
अभी भी बहुत से निर्धन,असहाय,कलाकार टकटकी लगाए सरकार से आर्थिक सहयोग की आस लगाए बैठे हैं।आर्थिक सहयोग के लिए उनका आवेदन संस्कृति विभाग में लम्बे समय तक लंबित रहता है। ऐसे आर्थिक रूप से कमजोर कलाकारों को यथासंभव शीघ्रातिशीघ्र मदद करने की अपेक्षा सरकार से है। ऐसे कलाकारों का महाशत्रु पापी पेट बना हुआ है।
कलाकारों का महाशत्रु है पापी पेट
पापी पेट की मार से मजबूर कलाकार ही अपना स्वाभिमान बेचने मजबूर हो जाता है। ईश्वर ने कलाकारों को पेट नहीं दिया होता तो शायद ही कभी कोई कलाकार अपने आत्मसम्मान, स्वाभिमान को बेचता। कोरोना संक्रमण काल में सांस्कृतिक, सामाजिक कार्यक्रमों पर पाबंदी के कारण उत्पन्न आर्थिक तंगी ने कलाकारों को कुछ अन्य आय का जरिया अपनाने का रास्ता दिखाया। कलाकारों ने सड़क पर कपड़े बेचना, विविध दूकान खोलना,कुली, ड्राइवरी,मजदूरी करना जैसे अन्य कार्य जीविकोपार्जन के लिए शुरू कर दिया।
जिसे कलाकारों की दुर्दशा का नाम दिया गया। यह उचित नहीं है।मेरे विचार से कलाकारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कलाकारी के साथ-साथ जीविकोपार्जन के लिए कुछ ना कुछ अन्य व्यवसाय को अपनाने की आवश्यकता बड़े से बड़े कलाकारों को भी होती है। पिछले चालीस वर्षों से छत्तीसगढ़ी और हिंदी रंगमंच के साथ-साथ रेडियो टीवी और अब छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत में भी अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर मुझे मिला है, लेकिन वर्ष 1979 से 82 तक मुझे भी बेरोजगारी के दिन देखने मिले थे।
तब भी मेरी कला को मैं अनवरत प्रदर्शित करता था ,उन दिनों मुझे ताने भी सुनने पड़ते थे कि नाटक नौटंकी से कुछ नहीं मिलने वाला है, जीवन चलाना है तो कुछ नौकरी चाकरी ढूंढो।
कलापथ पर संघर्ष का मिला बेहतर प्रतिफल
कलाकारों को बात बात पर सरकार की ओर मुंह ताकने की आवश्यकता नहीं है, माना कि कोरोना वायरस संक्रमण काल ने कलाकारों ,पत्रकार, कलमकार, मूर्तिकार भाइयों को भी काफी हद तक तोड़ कर रख दिया है,पर जीना है तो कोरोना वायरस को अपने दम पर ,अपनी कला के बल पर, अपनी कलम के बल पर मारना होगा।ऐसे अनेक उदाहरण कला जगत में भरे पड़े जो इस बात के साक्षी हैं? कि कलाकार अपनी कला के बल पर बहुत कुछ कर सकते हैं। कला के बलबूते हीशासकीय सेवा यात्रा में अतिरिक्त महाप्रबंधक (जनसंपर्क) छत्तीसगढ़ स्टेट पावर कंपनी का बड़ा पद मुझे हासिल हुआ। इस पद पर रहते हुए कला प्रतिभा को प्रदर्शित करने का सुनहराअवसर प्राप्त हुआ।
सरकारी मदद में न हो देरी
राज्य सरकार निश्चित रूप से कलाकारों को मदद करने की मंशा रखती है, लेकिन किसी भी काम में देरी जो होती है वह उस काम को सफल नहीं बना पाती। हितग्राहियों को सरकार की नियति पर संदेह होने लगता है ।सरकारी विभागों से अपेक्षा है ,कलाकारों की जो देनदारियां है उसे यथा समय भुगतान करें ।
कलाकारों के खाने-पीने का प्रबंध स्तरीय हो
कलापथक के कर्मी सरकार की योजनाओं के लिए जी-जान लगाकर गांव गांव जाते हैं, तो उनका भुगतान समय पर करें। एक बात का बहुत दु:ख होता है ,अक्सर सरकारी कार्यक्रमों में कलाकारों के रुकने और खाने की व्यवस्था फोर्थ क्लास होती है। कांजी हाउस में भी ठहराने का उदाहरण देखने मिला है।कम से कम खाने पीने ठहरने के लिए अच्छी जगह हो ताकि एक कलाकार अपनी प्रस्तुति को दिल से कर सके, मन से कर सके।
मेरी तो यह सोच है कि एक कलाकार को अपने आप को ,अपनी कला को जीवित रखने के लिए छोटे से छोटा काम करना पड़ता है तो उसे हंसकर करना चाहिए क्योंकि हंसकर किया हुआ काम ही नाम दाम शोहरत को सुनिश्चित करता है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में गांव गांव की कला संस्कृति (Art Literature) और रामायण मंडलियों को बढ़ावा देने हेतु बड़े-बड़े पुरस्कारों की घोषणा की है ।इससे कला जगत, रामायण मंडली और लोक कलाकारों के लिए बेहतरीन कदम कहा जा सकता है।