किशन भावनानी। Animal Husbandry Production : वैश्विक स्तरपर आज भारत हर क्षेत्र में अति तीव्रता से अपनी उपलब्धियों के झंडे गाड़ता हुआ तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिसमें कृषि प्रौद्योगिकी विज्ञान परिवहन शिक्षा खेल स्वास्थ्य कौशलता सहित हर छेत्रों में पिछले एक दशक से वैश्विक रैंकिंग में सफलताओं की छलांग लगा रहा है। कल ही हमने देखे लॉजिस्टिक परफॉरमेंस और विदेशी मुद्रा भंडार में एक उपलब्धि हासिल की है। भारत एक कृषि और गांव प्रधान देश है, जिसमें कृषि और पशुपालन हमारे गांववासियों का प्रमुख जीवनयापन का साधन है, जिसका हम तीव्रता से विकास कर रहे हैं।
पशुपालन उत्पादन के प्रमुख उत्पादन क्षेत्र दूध उत्पाद में आज हम विश्व में नंबर एक रैंकिंग पर हैं और पशुपालन में भी हम नंबर वन है। गुजरात का बनासकांठा गांव आज दूध के उत्पादन में पूरे एशिया में नंबर वन पर है। पिछले 8 वर्षों में दूध उत्पादन में भारत ने 51 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है जो रेखांकित करने वाली बात है। चूंकि पिछले कुछ दिनों से एक राज्य में जहां 10 मई 2023 को चुनाव की घोषणा भी हुई है, वहां दूध उत्पादन के दो ब्रांडों को लेकर पक्ष विपक्ष में सियासी शाब्दिक जंग शुरू है, जिसमें दूध ब्रांड युद्ध की गरमाई महसूस की जा रही है, जिसके चुनाव का मुद्दा बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। जिसके बचाव पक्ष में आज दिनांक 23 अप्रैल 2023 को केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा भी एक कार्यक्रम में इस मुद्दे को उछाला गया।इसीलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, दूध ब्रांड से हमारा तुम्हारा भावनात्मक भाव छोड़ राष्ट्रहित नागरिकहित की सोच को रेखांकित करना ज़रूरी है।
साथियों बात अगर हम एक चुनाव घोषित राज्य में दूध ब्रांड युद्ध की गर्मी की करें तो, 10 मई 2023 को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा लेकिन उसके पहले वहां एक ब्रांड की एंट्री प्रदेश में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है। वहां स्थानीय दूध और डेयरी ब्रांड बेहद लोकप्रिय है।लेकिन दूसरे ब्रांड के एंट्री के एलान के बाद से दोनों मुख्य पार्टीयों के बीच चुनावी घमासान शुरू हो चुका है। एक ब्रांड का उस के दूध और डेयरी मार्केट में वर्चस्व है। दोनों ब्रांडों के बीच घमासान तब शुरू हुआ जब एक ब्रांड ने ट्वीट द्वारा एलान किया कि वो चुनावी राज्य में डेयरी प्रोडक्ट्स ऑनलाइन और ई-कॉमर्स मार्केट्स के जरिए बेचेगी। हालांकि उस राज्य में ये आशंका गहरा गई कि उस ब्रांड के एंट्री से इस ब्रांड को झटका लगेगा और मार्केट में उसका वर्चस्व खत्म हो जाएगा। जिसके बाद से उस ब्रांड का विरोध शुरू हो गया है। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में उस ब्रांड की एंट्री के मामले ने राजनीतिक तूल ले लिया है। चुनावी राज्य के विपक्षी दलोंं ने इसे ए बनाम एन की जंग बना दिया है।
मसलन, चुनावी राज्य में उस ब्रांड की एंट्री को नंदिनी के वजूद के लिए खतरा बताया जा रहा है. साथ इस ब्रांड की एंट्री को डेयरी कोऑपरेटिव के नियमों के खिलाफ भी कहा जा रहा है, लेकिन इस राजनीतिक नूरा-कुश्ती में पीछे सच ये है कि इस ब्रांड का भी गुजरात समेत कई राज्यों में बड़ा साम्राज्य है, जिसमें इस ब्रांड के कई राज्यों में कारोबार कर करोड़ों रुपये कमा रहा है।
साथियों बात अगर हम दूध के दो ब्रांडों के मुद्दे पर विवाद की करें तो, देश की सबसे बड़ी दुग्ध उत्पादक कंपनियों में से एक ब्रांड और चुनावी रे राज्य के स्थानीय ब्रांड को लेकर विवाद की स्थिति पांच अप्रैल को शुरू हुई थी। दरअसल, पांच अप्रैल को गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन, जो कि अपने डेयरी उत्पाद उस ब्रांड के अंतर्गत बेचता है, ने ट्वीट किया था कि वह कर्नाटक में एंट्री के लिए तैयार है। उसने ट्विटर हैंडल पर लिखा, दूध और दही के साथ ताजेपन की एक नई लहर जल्द बेंगलुरु आ रही है। इसपर ज्यादा जानकारी जल्द। लॉन्च अलर्ट। इस ट्वीट के बाद चुनावी रज्य में राजनीति भी शुरू हो गई।
राजनीतिक दलों ने राज्य में होने वाले चुनाव के मद्देनजर एक नए ब्रांड की एंट्री को चुनावी मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके लिए इन पार्टियों ने यहां की स्थानीय डेयरी उत्पाद निर्माता कंपनी, के मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) का सहारा लिया, जो कि इस ब्रांड के अंतर्गत अपने उत्पाद बेचता है। उस ब्रांड के ट्वीट के बाद ट्विटर पर इस ब्रांड को बचाओ और उस ब्रांड को वापस जाओ जैसे हैश टैग ट्रेंड होने लगे। कुछ रिपोट्र्स में कहा जाता है कि यह मिल्क फेडरेशन देश का दूसरा सबसे बड़ा दूध का सप्लायर है।
साथियों बात अगर हम मामले पर सियासी हावी होने की करें तो, चुनावी राज्य में उस ब्रांड की एंट्री चुनाव के मद्देनजर एक अहम मुद्दा बन गया है और इसे उठाया है मुख्य विपक्षी दलों ने। मुख्य विपक्षी पार्टी ने सताधरी पार्टी पर आरोप लगाया है कि वह राज्य के एक बेहतरीन डेयरी ब्रांड को खत्म करने की साजिश कर रही है। 8 अप्रैल को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने उस ब्रांड के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए इस ब्रांड के मुद्दे को राज्य की पहचान से जोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि सभी कन्नड़ साथियों को शपथ लेनी चाहिए कि वे उस ब्रांड के उत्पाद नहीं खरीदेंगे। विपक्ष का यह भी आरोप है कि पक्ष के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार दो कोऑपरेटिव ब्रांड्स- को आपस में मिलाना चाहती है। उनका कहना है कि दिसंबर 2022 में जब केंद्रीय गृह मंत्री कर्नाटक के मांड्या में केएमएफ की 260 करोड़ रुपये की मेगा डेयरी का उद्घाटन करने आए थे, तो उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि दोनों ब्रांडों को साथ आना चाहिए। उनके इस बयान को निशाना बनाते हुए विपक्ष का कहना है कि पक्ष कर्नाटक राज्य के एक अहम ब्रांड को खत्म करना चाहती है।
साथियों बात अगर हम विपक्ष की लाबिंग की करें तो, रविवार को ही बेंगलुरु के एक होटल संगठन- बृहत बेंगलुरु होटल्सएसोसिएशन ने एलान किया कि वे शहर में उस ब्रांड के उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करेंगे और कर्नाटक के स्थानीय किसानों को समर्थन देने के लिए सिर्फ लोकल ब्रांड का ही प्रयोग करेंगे। चौंकाने वाली बात यह है कि होटल एसोसिएशन के इस फैसले से पहले ही विपक्ष नेता ने उस ब्रांड का विरोध किया था और चुनाव से पहले इसे अहम राजनीतिक मुद्दा बना दिया। कर्नाटक में दोनों मिल्क ब्रैंड को लेकर भी राजनीति गरमाई हुई है। हाल ही में विपक्ष युवा नेता भी इस मिल्क पॉर्लर पहुंचे थे और उन्होंने वहां आइसक्रीम खरीदकर इसको बेस्ट ब्रैंड बताया था। विपक्षी दलों ने आशंका जताई है कि उस ब्रांड के अधिग्रहण के लिए रास्ता बनाने के लिए इस ब्रांड के उत्पादों की कमी की जाएगी।
हालांकि कर्नाटक के नेतृत्व वाली सरकार ने इस आरोप का खंडन किया है और कहा है कि उससे इसको कोई खतरा नहीं है। लेकिन इस राजनीतिक नूरा-कुश्ती में पीछे सच ये है कि इस ब्रांड का भी गुजरात समेत कई राज्यों में बड़ा साम्राज्य है, जिसमें यह कई राज्यों में कारोबार कर करोड़ों रुपये कमा रहा है। साथियों बात अगर हम केंद्रीय वित्तमंत्री के पक्ष के करें तो उन्होंने कहा कि अचानक यह कहना कि उस ब्रांड को कर्नाटक में इस ब्रांड को खत्म करने के लिए लाया जा रहा है ‘शर्मनाकÓ है।
उन्होंने दावा किया कि गुजरात का दूध ब्रांड कर्नाटक में तब आया, जब यहां कांग्रेस सत्ता में थी। के दूध महासंघ (केएमएफ)
इस ब्रांड नाम के तहत दूध, दही और अन्य डेयरी उत्पाद बेचता है, चीजों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया और भावनात्मक मुद्दा बनाया गया, क्योंकि कर्नाटक में 10 मई को चुनाव होने हैं। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में इस ब्रांड और डेयरी किसानों को मजबूर करने का सवाल कभी नहीं था, उन्हें मजबूत करने का प्रयास जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि यह ब्रांड भी अपने उत्पाद केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बेचता है, जैसे अन्य राज्यों के डेयरी के उत्पाद कर्नाटक में उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा,मैं कहूंगी कि अच्छी प्रतिस्पर्धा है। यही कारण है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया है।
भारत की योजना में, हर राज्य की अपनी दुग्ध सहकारी समिति है। कर्नाटक के ब्रांड को कौन नहीं पहचानता? अभी जब मैं आयी हूं, तो इसका दूध, दही, पेड़ा खाया, बेशक दिल्ली में मैं वो ब्रांड खरीदूंगी। मैं दिल्ली में, कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करती हूं (लेकिन) अगर वहां यह उपलब्ध नहीं है, तो ऐसा नहीं कहूंगी कि मैं दूध नहीं खरीदूंगी। मैं वहां के उत्पाद खरीदती हूं। यह कर्नाटक के खिलाफ नहीं है। मंत्री यहां ‘थिंकर्स फोरम, कर्नाटकÓ के साथ बातचीत के दौरान दोनों ब्रांड विवाद के संबंध में एक सवाल का जवाब दे रही थीं।
अत: अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करउसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दूध ब्रांड पर युद्ध की गरमाई ! दही पर विवाद के बाद अब दूध ब्रांडो पर सियासी शाब्दिक जंग ! दूध ब्रांड के हमारा तुम्हारा भावनात्मक भाव को छोड़ राष्ट्रहित, नागरिकहित की सोच को रेखांकित करना ज़रूरी है।