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‘अनारक्षित सीटों में चयनित आरक्षित वर्ग की 92 महिलाओं का चयन यथावत रखें’

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भोपाल/नवप्रदेश। अखिल भारतीय अपाक्स (akhil bhartiya apax) ने मप्र लोक सेवा आयोग (mppsc) की उच्च शिक्षा विभाग की असिस्टेन्ट प्रोफेसर (assistant professor) नियुक्ति में अनारक्षित (महिला) सीटों में चयनित आरक्षित वर्ग की महिलाओं (woman of reserved category) के चयन (selection) को यथावत रखने की मांग की है।

अखिल भारतीय अपाक्स (akhil bhartiya apax) राष्ट्रीय अध्यक्ष इंजी. एपी पटेल ने बताया कि इसके लिए उनके संगठन की ओर से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, लोक सेवा आयोग (mppsc) इन्दौर, मप्र. के उच्च शिक्षा विभाग, मुख्यसचिव मप्र, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों का पत्र लिखा है। संगठन की ओर से कहा गया है कि मप्र लोक सेवा आयोग की उच्च शिक्षा विभाग की असिस्टेन्ट प्रोफेसर (assitant professor) नियुक्ति (selection) में अधिक प्राप्तांकों (मेरिट) के आधार पर अनारक्षित (महिला) सीटों में चयनित आरक्षित वर्ग की 92 महिला (woman of reserved category) उम्मीदवारों को अनारक्षित (महिला) सीटों की चयन सूची में यथावत ही रखा जाय।

मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में दायर करे अपील


पटेल, भोपाल ने बताया कि उनके संगठन ने यह मांग भी की है कि चयन सूची बना चुके लोक सेवा आयोग, म. प्र. शासन व 92 आरक्षित उम्मीदवारों के विरुद्ध आए उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्णय (दिनांक 29-04-2020) का कार्यान्वयन रोकने स्वयं मप्र. शासन व एमपीपीएससी की ओर से तत्काल सर्वोच्च न्यायलय में अपील दायर की जानी चाहिए। वहीं पुनरीक्षित सूची के स्थान पर यदि नवीन सूची बनाई जाती है तो नियमानुसार पुन: मेरिट के आधार पर अनारक्षित (महिला) सीटों में चयनित आरक्षित श्रेणी की महिला उम्मीदवारों को अनारक्षित (महिला) सीटों में ही गिना जाए।

पूरा मामला पटेल की जुबानी

नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है फैसला

पटेल ने बताया कि मप्र उच्च न्यायलय जबलपुर की डब्ल्यूपी क्र. 19126/2019 पिन्की असाटी विरुद्ध मप्र शासन के निर्णय दिनांक 29-04-2020 के ऑब्जर्वेशन में लिखी यह बात कि अजा, जजा व अन्य पिछड़ा वर्ग की आरक्षित श्रेणी की महिला उम्मीदवारों को मेरिट के आधार पर अनारक्षित (महिला) सीटों में चयनित नहीं किया जा सकता नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। यह बात उच्च न्यायालय द्वारा उद्धृत राजेश दारिया व ममता बिष्ट के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में भी नहीं लिखी गई है।

राजेश दरिया प्रकरण एक ही कंपार्टमेंट के महिला पुरष का मामला

उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय का राजेश दारिया प्रकरण राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा
अनुमत महिला आरक्षण की मात्रा से अधिक महिला उम्मीदवारों को चयनित कर लेने के कारण कुछ पात्र पुरुष उम्मीदवारों के चयनित नहीं होने से संबन्धित था। (अर्थात झगड़ा एक ही कम्पार्टमेन्ट के महिला व पुरुष अभ्यर्थियों के बीच का आपस का था)।

ममता बिष्ट प्रकरण भी एक ही कंपार्टमेंट की दो महिलाओं का मामला

पटेल के मुताबिक इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय का ममता बिष्ट प्रकरण भी उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग की चयन सूची में अनारक्षित (ओपन) मेरिट में आई नीतू जोशी (मेरिट क्र. 09) को अनारक्षित (महिला) कोटे की 5 आरक्षित सीटों में न गिनने व ऐसे अनारक्षित (महिला) कोटे की 1 सीट रिक्त कर उस सीट पर ममता बिष्ट को अनारक्षित (महिला) के रूप में नियुक्त करने की मांग से संबंधित था। जो हॉरिजंटल आरक्षण के नियमों के विरुद्ध था। (यानी यह झगड़ा एक ही कंपार्टमेंट की 2 महिला अभ्यर्थियों के बीच का आपस का था)। दोनों ही प्रकरणों में कहीं भी किसी आरक्षित उम्मीदवार के मेरिट के आधार पर अपनी केटेगरी से अनारक्षित सीटों में चयनित होने या प्रवजन (माइग्रेशन) पर तो कोई प्रश्न ही नहीं था।

ये कहता है केंद्र व राज्य सरकार का नियम

वहीं राज्य सरकार, भारत सरकार, उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय का यह स्थापित नियम है कि मेरिट के आधार अनारक्षित सीटों में चयनित आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित सीटों में ही गिना जावेगा व उन्हें आरक्षित सीटों में समायोजित नहीं किया जायेगा। इसे लागू करने में वर्टिकल या हॉरिजंटल आरक्षण कोई बाधा नहीं है। किसी भी नियुक्ति प्रक्रिया में अनारक्षित कम्पार्टमेन्ट (डब्बे) में आरक्षित श्रेणी की कोई भी महिला मेरिट के आधार पर चयनित हो सकती है। जैसे नगर निगम भोपाल के महापौर का पद यदि अनारक्षित (महिला) हो तो उस पद हेतु आरक्षित वर्ग की कोई भी महिला बे रोक टोक चुनाव लड़ सकती है।

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