Site icon Navpradesh

Air Pollution : चिंता का सबब, प्रदूषण वाला लॉकडाउन…

Air Pollution A cause for concern, the pollution-induced lockdown...

Air Pollution

डॉ. श्रीनाथ सहाय। Air Pollution : दीपावली के 15 दिन बीत जाने के बाद भी राजधानी दिल्लीवासी जानलेवा और जहरीले वायु प्रदूषण का दंश झेलने का विवश हैं। दिल्ली और एनसीआर में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। सांस के मरीजों की संख्या अचानक बढ़ गई है। लोग घरों के अंदर भी मास्क लगाने को मजबूर है। धुंध की चादर ने दिल्ली को हर समय एक धुंध की चादर ने ढंक रखा है। कोरोना संक्रमण लॉकडाउन के बाद लगातार जलाई जा रही पराली के कारण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की आबो-हवा एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है।

यह हर साल की बात है जब दिल्ली समेत उत्तर भारत में सर्दियो का सीजन शुरू होते ही वायु प्रदूषण से हालात चिंताजनक हो जाते हैं। जानलेवा प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया है। लॉकडाउन के दौरान सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, कॉलेज, शैक्षिक संस्थानों को बंद करने का फैसला लिया है। सरकारी कर्मचारी और अफसर (आपात सेवाओं को छोड़ कर) घर से ही काम करेंगे। बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन ही होगी। सभी निर्माण-कार्य, ईंट भट्टे, डीजल जेनसेट और भट्टियां, गाड्र्स को हीटर जलाने पर रोक लगा दी गई है।

हालांकि परिवहन, बाजार, मॉल्स, अस्पताल आदि यथावत रहेंगे। राजधानी की सड़कों पर लाखों वाहन हररोज चलते हैं। क्या उनसे प्रदूषण का जहर नहीं फैलता रहेगा? पराली जलाने से 30-40 फीसदी प्रदूषण होता है। उस पर सर्वोच्च न्यायालय का सुझाव है कि केंद्र सरकार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की सरकारों के साथ बैठक कर कोई नीति तय करे, लेकिन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन.वी.रमण ने यह सवाल किया है कि कमोबेश दिल्ली में दो दिन का पूर्ण लॉकडाउन क्यों नहीं लगाया जा सकता?

मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस पर गंभीरता से विचार करने की बात कही है। यदि पराली के अलावा वाहनों, उद्योगों, खुली धूल आदि से उपजे प्रदूषण की जानलेवा हवाओं को नियंत्रित करना है, तो लॉकडाउन ही फिलहाल एक विकल्प लगता है। दीपावली के बाद दो सप्ताह से ज्यादा का समय गुजर चुका हैं, लेकिन राजधानी के ज्यादातर हिस्सों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 से ऊपर है। कुछ हिस्सों और नोएडा, गुरुग्राम आदि एनसीआर के इलाकों में एक्यूआई 500 से अधिक रहा है।

यह गंभीर ही नहीं, आपात स्थिति है। दिल्ली-एनसीआर की हवा बीते शनिवार को दुनिया में सबसे खराब आंकी गई। आकलन किए जा रहे हैं कि फिलहाल 25 दिनों तक पूरी तरह राहत के आसार नहीं हैं। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि घर में भी मास्क पहनना पड़ रहा है। इन हालातों के बीच वायु प्रदूषण की भयावह तस्वीर पेश करती हुई एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण की वजह से एक साल में तकरीबन 1,16,000 लाख से ज्यादा नवजात शिशुओं की मौत हुई है।

इसका साफ अर्थ है कि वायु प्रदूषण नवजातों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है। बता दें कि यह दावा स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 नाम की एक वैश्विक रिपोर्ट मे किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 1,16,000 लाख में से करीब आधे से ज्यादा बच्चों की मौत बाहरी च्ड 2.5 प्रदूषक तत्वो से संबंधित है। इनमे खाना पकाने का ईंधन, लकड़ी का कोयला, गोबर जैसे ईंधन खासतौर पर शामिल हैं। इनसे उत्पन्न हुए वायु प्रदूषण ने ही नवजातों की जिंदगी को लील लिया।

वहीं वायु प्रदूषण (Air Pollution) की वजह से मौत की नींद सोने वाले बच्चों में ये भी पाया गया कि या तो जन्म के बाद उनका वजन काफी कम था या फिर उनका जन्म प्रीमैच्योर हुआ था। भारत में 2019 में ही बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के लंबे समय के प्रभाव की वजह से स्ट्रोक, दिल का दौरा, डायबिटीज, फेफड़े के कैंसर, पुरानी फेफड़ों की बीमारियों और नवजात रोगों से 16.7 लाख यानी 1.67 मिलियन मौतें हुई हैं। नवजात शिशुओं में ज्यादातर मौतें जन्म के समय कम वजन और समय से पहले जन्म से संबंधित जटिलताओं से हुई है।

वहीं रिपोर्ट की माने तो वायु प्रदूषण अब दूसरों के बीच भी मौतों का सबसे बड़ा खतरा हैं. बता दें कि इस रिपोर्ट को बुधवार को हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट ने प्रकाशित किया है। यह एक स्वतंत्र, गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान हैं. इसे अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी और अन्य वित्त पोषित करती हैं।

गौरतलब है कि यह रिपोर्ट कोरोना महामारी के समय में आई है। दरअसल कोरोना भी दिल और फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है। इस कराण बड़ी संख्या में भारत में लोगों की जान भी गई है। भारत में कोरोना की वजह से अब तक 1 लाख 15 हजार से ज्यादा लोग मौते के आगोश में समा चुके हैं। वहीं रिपोर्ट की माने तो कोरोना से मरने वाले ज्यादातर लोग पहले से ही फेफड़ों या हृदय संबंधी किसी न किसी बीमीरी से पीडि़त थे और इसकी वजह कहीं न कहीं वायु प्रदूषण (Air Pollution) भी थी। इस रिपोर्ट के बाद अब वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों और कोरोना में गहरा संबंध बताया जा रहा है।

प्रदूषण पर एक बार फिर सर्वोच्च अदालत बेहद सख्त हुई है। हर साल सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली में प्रदूषण बढऩे लगता है और सांस घुटने लगती है। यह सिलसिला जारी रहा है। अदालत ने ‘गैस चैंबर’ वाली टिप्पणियां भी की हैं, लेकिन कोई स्थायी समाधान सरकारें नहीं दे पाई हैं। सुप्रीम अदालत ने अब यह भी जानना चाहा है कि पराली के लिए जिन मशीनों को खरीदा गया था, वे किसानों को मुफ्त में ही मुहैया क्यों नहीं कराई गईं?

गरीब, कर्जदार किसान ऐसी महंगी मशीनें कैसे खरीद सकते हैं? राजधानी में जो स्मॉग टॉवर स्थापित किए गए थे, वे प्रदूषण पर लगाम क्यों नहीं लगा सके? किसान और पराली के बहाने बनाना एक फैशन बन गया है। पराली के अलावा 70 फीसदी प्रदूषण (Air Pollution) के बुनियादी कारक क्या हैं? क्या सरकारों ने उन्हें नियंत्रित करने का कोई कार्यक्रम बनाया है?

Exit mobile version