राजेश माहेश्वरी। Agnipath Yojana : सेना में भर्ती के लिए घोषित अग्निपथ योजना का देश के कई हिस्सों में विरोध हो रहा है। युवाओं ने सड़कों पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन किया। सबसे ज्यादा विरोध बिहार में देखने को मिला है। जहां आंदोलनकारियों ने सरकारी संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया। युवाओं के मन में इस योजना को लेकर कई सवाल है। सरकार और सेना विभिन्न मंचों और माध्यमों से युवकों के सवालों और आंशकाओं का जवाब दे रही है, लेकिन जिस तरह से इस मामले में राजनीति हो रही है वह मामले के समाधान के बजाय समस्या की गंभीरता को बढ़ा रही है। कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दल इस योजना के विरोध में हैं।
दलों के नेता अपने भाषणों, बयानों और सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को भ्रमित तो कर ही रहे हैं। वहीं इनके बयान युवाओं को भड़काने का काम भी कर रहे हैं। ये योजना देश के भविष्य यानी युवाओं से जुड़ी है। ऐसे में युवाओं से जुड़े किसी मसले पर राजनीतिक दलों का इस प्रकार का अगंभीर आचरण बड़ी चिंता की वजह है।
सेना प्रमुख से लेकर तमाम जिम्मेदारी अधिकारियों ने इस योजना को लेकर उपजी आशंकओं को शांत करने की भरसक कोशिश की है। और ये कोशिश लगातार जारी है। इसके साथ ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने संयुक्त रूप से ये ऐलान कर दिया कि अग्निपथ योजना को वापिस नहीं लिया जाएगा। दूसरी तरफ सेना के सभी अंगों को इस योजना के अंतर्गत भर्ती की प्रक्रिया तत्काल शुरु करने के निर्देश भी मंत्रालय ने जारी कर दिए हैं। भारतीय वायु सेना ने तो इस योजना के तहत भर्ती की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है।
इस पूरे मामले में सरकार की आलोचना करते-करते कुछ नेताओं ने सेनाध्यक्षों पर भी जिस तरह की टिप्पणियां कीं वे निश्चित तौर पर उस मर्यादा का उल्लंघन है जिसके अंतर्गत सेना को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे रखा जाता है। इस योजना के बारे में प्रारम्भिक तौर पर लगा कि इसे जल्दबाजी में तैयार किया गया है। लेकिन धीरे-धीरे ये बात स्पष्ट होती जा रही है कि बीते अनेक दशकों से इस पर मंथन चल रहा था। जिसकी शुरुवात स्व. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में ही हो चुकी थी।
उनकी सरकार में रक्षा मंत्री रहे अरुण सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति ने रक्षा सुधारों को गति देने की प्रक्रिया शुरू की। उसके बाद जब वाजपेयी सरकार के समय कारगिल युद्ध हुआ तब कारगिल रक्षा समिति बनाई गयी। मंत्रीमंडलीय स्तर की इन समितियों ने सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लम्बी मंत्रणा और अध्ययन के बाद सेना के आधुनिकीकरण के साथ ही उसकी औसत आयु में कमी हेतु जो कार्ययोजना बनाई उसी का परिणाम है अग्निपथ।
असल में विपक्ष को सरकार के हर निर्णय का विरोध और आलोचना करने की आदत सी हो गयी लगती है। कृषि कानूनों से लेकर तमाम दूसरे फैसलों पर विपक्ष ने सकारात्मक विमर्श की बजाय सड़क पर उतरने का काम किया। विपक्ष ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की कि सरकार का हर फैसला जन विरोधी है। विपक्ष के रवैये के चलते सीएए एनआरसी, किसान आंदोलन और अब युवाओं के इस आंदोलन का रूख हिंसक हुआ, ये खुला तथ्य है। किसान आंदोलन के दौरान लाल किले की शर्मनाक घटना अभी देशवासी भूले नहीं हैं।
विपक्ष हर मसले पर कभी किसानों और कभी युवाओं को आगे कर देश को हिंसा की आग में झोंक देता है। बात अगर अग्निपथ योजना की कि जाए तो इस योजना को लेकर विपक्ष ने अपने विरोध का कोई ठोस कारण पेश नहीं किया। और न ही सरकार के साथ इसे लेकर कोई सार्थक विचार विमर्श ही किया। बस योजना की घोषणा होते ही विरोध के स्वर उभरने लगे और देखते ही देखते करोड़ों की सरकारी संपत्ति को आंदोलनकारियों ने स्वाहा कर डाला। विपक्ष ने शांति पूर्वक बातचीत के रास्ते की बजाय सरकार की छवि धूमिल करने और युवाओं को भ्रमित करने का काम किया।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि चार साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले नौजवान का अपने भविष्य के प्रति चिंतित होना स्वाभाविक है। ये बात भी सही है कि किसी भी नौकरी का आकर्षण वेतन के अलावा मिलने वाली अन्य सुविधाएं और भत्ते तो होते ही हैं लेकिन सेवा निवृत्ति के बाद मिलने वाली इलाज की सुविधा और पेंशन आदि का भी बड़ा महत्व है। विशेष रूप से सेना की नौकरी (Agnipath Yojana) से निवृत्त्त जवान को मिलने वाली आर्थिक सुरक्षा तथा सुविधाओं की वजह से ही बड़ी संख्या में नौजवान सैनिक बनने की चाहत पालते हैं। लेकिन स्व. राजीव गांधी से लेकर डा. मनमोहन सिंह तक न जाने कितने प्रधानमंत्री आये-गये परंतु किसी ने भी सेना में सुधार कार्यक्रम तैयार करने वाली समितियों और उनकी गतिविधियों को रोका नहीं।
ये भी जानकारी मिल रही है कि सेना की तरफ से समय-समय पर रक्षा मंत्रालय को तत्संबंधी सुझाव दिए गये जिन पर सरकार द्वारा विचार किया जाता रहा। पूरे एक दशक तक यूपीए की सरकार का नेतृत्व डा. मनमोहन सिंह ने किया। कारगिल रक्षा समिति उसके पूर्व ही बन चुकी थी। फौज की औसत आयु घटाने संबंधी जो फैसले दुनिया के तमाम देशों ने किये वे ही मूल रूप से उक्त समितियों की विषय सूची में रहे होंगे। अनेक पूर्व सेनाध्यक्षों ने टीवी चर्चाओं में ये स्पष्ट किया कि वेतन और पेंशन पर कुल बजट का 85 फीसदी खर्च हो जाने के कारण सेना के आधुनिकीकरण का काम पिछड़ रहा था। ये बात भी सामने आई है कि आजकल युद्ध में सैनिकों के साथ-साथ तकनीक की भूमिका काफी बढ़ती जा रही है।
जिसमें नई पीढ़ी जल्दी पारंगत होती है। ये भी कि युद्ध की स्थिति में 21 से 25 साल आयु वर्ग के जवान और अधिकारी ही सबसे बढिया शौर्य प्रदर्शन करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारतीय सेना में औसत आयु 32 वर्ष है जबकि दुनिया के प्रमुख देशों ने इसे घटाकर 26 वर्ष कर लिया है। ऐसे में अग्निपथ योजना को लेकर खड़ा किया गया विरोध गलत अवधारणाओं और दुष्प्रचार पर आधारित लगता है। आंकड़ों के आलोक में बात की जाए तो लगभग 13 हजार जवान प्रतिवर्ष सेवा निवृत्त हो जाते हैं या नौकरी छोड़ देते हैं। जिन सुधारों का जमकर, कट्टर विरोध किया गया था, आज वे सभी हमारी व्यवस्था के बुनियादी ढांचे हैं। क्या आज कम्प्यूटर के बिना हम रोजमर्रा के कामों की भी कल्पना कर सकते हैं?
आपका मोबाइल फोन ही ठप हो जाएगा। आपको नौकरी ही नसीब नहीं होगी। आप डिजिटल लेन-देन में असहाय महसूस करेंगे। इसी तरह ‘अग्निपथ’ के जरिए सैन्य सुधार धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहे हैं। भारत सरकार लगातार संशोधन कर रही है। सरकार द्वारा योजना वापिस न लिए जाने की घोषणा से एक बात तो साफ हो गई कि वह और सेना दोनों अग्निपथ को लेकर संकल्पित हैं और उन्हें ये विश्वास है कि ये योजना सेना और अग्निवीर दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगी। भारत सरकार ने रिटायर हुए ‘अग्निवीरों’ के लिए रक्षा मंत्रालय, तटरक्षक, रक्षा के 16 सार्वजनिक उपक्रमों में और दूसरी तरफ गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और असम राइफल्स में 10-10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की है।
कुछ और मंत्रालयों और राज्य सरकारों में भी ‘अग्निवीरों’ (Agnipath Yojana) को प्राथमिकता दी जाएगी। वैसे इस योजना की अग्निपरीक्षा भर्ती शुरू होते ही हो जायेगी। यदि युवाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तो ये माना जाएगा कि तोडफोड़, हिंसा तथा आगजनी उसी साजिश का हिस्सा है जिसके तहत बीते कुछ समय से देश के अनेक हिस्सों में अशांति फैलाई जा रही है। युवा देश की शक्ति और भविष्य हैं, ऐसे में उनसे जुड़े मामलों में राजनीति को कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता।