डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। Agitating Farmers : पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ किसान आंदोलन आखिर खत्म हो गया। आंदोलनरत किसानों और सरकार के बीच आम सहमति बनने के बाद किसान आंदोलन समाप्ति की घोषणा हो चुकी है। किसान दिल्ली का बॉर्डर खाली करने लगे हैं। लगभग 11 माह के बाद सरकार ने एक लिखित प्रस्ताव किसानों को भेजा था, जिसे किसान नेताओं ने स्वीकार कर लिया है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा खुले मन से की थी। उन्होंने कहा था कि वो किसानों को अपनी बात समझा नहीं सके। प्रधानमंत्री की कृषि बिलों की वापसी की घोषणा और देश से माफी मांगने की बात पर विपक्ष ने सरकार का उपहास उड़ाया था। लेकिन सच मानिए माफी मांगना और देश की भावनओं को सर्वोपरि मानने के लिए बड़े दिल और खुले दिमाग की जरूरत होती है। माफी मांगना कोई कमजोरी नहीं वरन मजबूती और संवेदनशीलता की निशानी है।
सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी कानून पर विमर्श के लिए कमेटी बनाने की पेशकश की है। उसमें केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री तथा किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। मोर्चे को इस व्यवस्था में कोई बुनियादी आपत्ति नहीं है, लेकिन उसकी जिद्दी शर्त है कि कमेटी में मोर्चे के ही प्रतिनिधि हों। एमएसपी-विरोधी, विश्व व्यापार संगठन की नीतियों के पैरोकार और रद्द किए गए तीनों कानूनों के समर्थक कथित किसान संगठन कमेटी का हिस्सा नहीं होने चाहिए।
इसके अलावा, किसानों के खिलाफ आम आपराधिक केस या ईडी, आयकर, सीबीआई, पुलिस और एनआईए आदि के तहत दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की घोषणा सरकार करे। अब कई मुद्दों पर दोनों पक्षों में सहमति बन गई है, नतीजन किसानों ने घर वापसी शुरू कर दी है किसान काफी समय से तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे। किसान संगठनों का आरोप था कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा।
इस नए बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण करती। नए कानून में उल्लेख था कि इन चीजों और कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर एक्शन लिया जाएगा। सरकार इसके लिए तब आदेश जारी करेगी, जब सब्जियों और फलों की कीमतें 100 फीसदी से ज्यादा हो जातीं। या फिर खराब न होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 फीसदी तक इजाफा होता। किसानों का कहना था कि इस कानून में यह साफ नहीं किया गया था कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं।
ऐसे में हो सकता था कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें। तीसरा कारण यह था कि सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है, लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वे सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी सरकार ने किसानों को फायदा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हुई हैं। लेकिन इनमें दो ऐसी योजनाएं हैं जो किसानों के बीच काफी पॉपुलर हैं और हर किसान इन योजना का फायदा उठाना चाहता है।
ये योजनाएं हैं पीएम किसान सम्मान निधि योजना और प्रधानमंत्री मानधन योजना। मोदी सरकार की इन दोनों स्कीम के जरिए किसानों को 42000 रुपये सलाना दिए जाते हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के खाते में हर महीने 3000 रुपये आते है। यानी की सालाना 36,000 रुपये आए। वहीं पीएम किसान योजना के तहत, किसानों को 2,000 रुपये तीन किश्तें हर साल मिलती हैं। यानी उन्हें हर साल 6,000 रु दिए जाते हैं।
तो अगर किसी किसान को इन दोनों योजना का लाभ मिल रहा है तो उसे हर साल 42000 रुपये सरकार की ओर से मिलते हैं। प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के तहत 18 से 40 साल तक के किसानों को इस स्कीम का लाभ मिलेगा। लेकिन इसके लिए शर्त यह कि किसान के पास कम से कम 2 हेक्टेयर की खेती की जमीन होनी चाहिए। उन्हें हर महीने के हिसाब से 55 रुपये से लेकर 200 रुपये का ही प्रीमियम जमा करना होगा।
मोदी सरकार ने किसानों को उनकी मेहनत के बदले उपज की सही कीमत मिले, इसके लिए भी अनेक कदम उठाए गए। देश ने अपने रूरल मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया। मोदी सरकार ने एमएसपी तो बढ़ाई ही, साथ में रेकॉर्ड संख्या में सरकारी खरीद केंद्र भी बनाए। सरकार द्वारा की गई उपज की खरीद ने पिछले कई दशकों के रेकॉर्ड तोड़ दिए हैं। देश की एक हजार से ज्यादा मंडियों को इनाम योजना से जोड़कर किसानों को कहीं से भी अपनी उपज बेचने का एक प्लेटफॉर्म मोदी सरकार ने दिया है।
इसके साथ ही हमने देशभर की कृषि मंडियों के आधुनिकीकरण के लिए भी करोड़ों रुपये खर्च किए गये आज केंद्र सरकार का कृषि बजट 5 गुना बढ़ गया है। हर वर्ष सवा लाख करोड़ रुपये से अधिक कृषि पर खर्च किए जा रहे हैं। 1 लाख करोड़ रुपये के एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के माध्यम से गांव और खेत के नजदीक भंडारण इसकी व्यवस्था, कृषि उपकरण जैसी अनेक सुविधाओं का विस्तार ये सारी बातें तेजी से हो रही हैं। छोटे किसानों की ताकत बढ़ाने के लिए किसान उत्पादन संगठन बनाने का अभियान भी जारी है।
इस पर भी करीब 7 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। माइक्रो इरिगेशन फंड के आवंटन को भी दोगुना करके दस हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है। हमने क्रॉप लोन भी दोगुना कर दिया और इस वर्ष 16 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। पशुपालन और मछली पालन से जुड़े किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ मिलना शुरू हो गया है। मोदी सरकार किसानों के हित में हर संभव कदम उठा रही है। लगातार एक के बाद एक नए कदम उठाती जा रही है। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरे, उनकी सामाजिक स्थिति मजबूत हो, इसके लिए हर स्तर पर काम हो रहा है।
वास्तव में मोदी सरकार ने खेती-किसानी के लिए बहुत काम किया है, और भविष्य में किसानों के लिये कई कल्याणकारी योजनाओं पर सरकार के स्तर पर काम किया जा रहा है। होगा। कृषि कानूनों की वापसी के समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि, ”किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में 3 कृषि कानून लाए गए थे। मकसद ये था कि देश के किसानों को खासकर छोटे किसानों को और ताकत मिले। उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले।ÓÓ वो अलग बात है उनकी बात किसानों को समझ नहीं आई
किसानों आंदोलनकारियों (Agitating Farmers) के घर वापसी के फैसले से एक शहर से दूसरे शहरों के लिए आने जाने वालों को काफी राहत मिलेगी। अब तक बस, टैक्सी या निजी वाहनों में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश या जम्मू-कश्मीर के शहरों में आवागमन करने वालों को सीमाओं पर सड़कें बंद होने की वजह से लंबी दूरी करने की मजबूरी थी। रास्ते खुलने से उनकी मुश्किलें दूर हो जाएंगी। इससे जहां वाहनों पर खर्च में कमी और वक्त की बचत के साथ साथ वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी कम होगा।
कुल मिलाकर किसान आंदोलन का खत्म होना न किसी की जीत है और न ही किसी की हार। सरकार ने किसानों की आवाज सुनी। किसान आंदोलनकारियों (Agitating Farmers) ने भी सरकार के प्रस्ताव को मान लिया है। किसानों को खेतों की ओर लौटना चाहिए। असल में किसान खुशहाल होगा तो देश भी समृद्ध होगा। मोदी सरकार को अन्नदाताओं की बात खुले मन से सुनने, स्वीकारने और उदारता के लिये शुक्रिया।