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‘न्याय’ की अवधारणा के बाद अब ‘भरोसे’ की कसौटी पर कांग्रेस-भाजपा

After the concept of 'nyay', now Congress-BJP on the test of 'bharosa'

यशवंत धोटे

रायपुर/नवप्रदेश। ठीक साढ़े चार साल पहले न्याय (nyay) की अवधारणा लिए बम्पर जनादेश के साथ सत्ता में आई कांग्रेस अब पांचवे साल में भरोसे की कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश कर रही है। दरअसल 2018 के चुनावी साल में भाजपा ने मोबाइल इसलिए बांटे कि 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार की डिजिटल सामग्री इसी मोबाईल से घर-घर पहुंच जाए।

मात्र दो साल का किसानों को धान का बोनस नही दे पाने वाली भाजपा के लिए भरोसे का संकट इतना बड़ा हो गया था कि सीधे 50 से 15 पर आना पड़ा। किसानो के साथ उसी अन्याय का हवाला देकर सत्ता में आई काग्रेस ने भी वादा किया था कि 2500 रूपए प्रति क्विंटल धान खरीदी के साथ ही भाजपा सरकार द्वारा लम्बित दो साल का बोनस देकर न्याय करेंगे। हालांकि इस न्याय के प्रकल्प पर सत्ता व सगंठन अभी मौन है।

2018 में तो कांग्रेस के चुनावी प्रचार का सूत्र वाक्य ही था कि ‘अब होगा न्याय‘। जनता ने भरोसा किया, बम्पर जनादेश दिया, सरकार बनी तो अधिकांश योजनाओं को न्याय से जोड़ दिया और मुख्यमंत्री जब भूपेश बघेल बने तो नया नारा गढ़ दिया, ‘भूपेश है तो भरोसा है’। इसी भरोसे की कसौटी पर कसी जाने वाली है 2023 और 24 की चुनावी रणनीति। भाजपा वैसे ही आक्रामक है जैसे 2018 में 15 साल बाद एकजुट हुई कांग्रेस थी। प्रत्येक स्वनामधन्य नेता अपने आप को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहा था।

यह गुब्बारा भी तब फूटा जब दो साल बाद एक दावेदार प्रकट हुए और उनके राजनीतिक करियर को नेस्तनाबूत करने पूरी सिपहसालार मंडली लग गई। कमोबेश यही स्थिति अब भाजपा में है, ‘मोदी है तो मुमकिन है’। यह सिर्फ जुबां पर है धरातल पर कुछ और है। प्रचार में तो भाजपा का भरोसा मोदी पर हैं लेकिन मुख्यमंत्री के लिए भरोसा किस पर हो यह समय के गर्भ में है। फिर भी नए राज्य के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि एक- एक सीट और एक- एक वोट के लिए भीषण संघर्ष होगा।

कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार बचाने और जनता के प्रति न्याय का भरोसा कायम रखने मैदानी तौर पर अनेक प्रकल्पो पर रायशुमारी जारी है। पहले के दो साल कोरोना और आखरी के दो साल केन्द्र की एजेसिंयो के साथ दो चार होते संगठन व सत्ता का तालमेल ठीक चुनाव के मुहाने पर असन्तुलित होता दिख रहा है। लेकिन कांग्रेस का आन्तरिक संघर्ष उसकी असल ताकत है। हालांकि उसे दूसरे शब्दों में गुटबाजी या कांग्रेस का आन्तरिक लोकतंत्र भी कहा जाता है। बहरहाल भाजपा के लिए अभी भरोसे का संकट बरकरार है और कांग्रेस की न्याय यात्रा पर जनता का भरोसा बरकरार रखना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।

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