5 साल की जेल और 25,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई
नई दिल्ली। supreme court: कोई भी महिला 16 साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद किसी पुरुष पर बलात्कार का आरोप नहीं लगा सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल शादी करने का वादा तोडऩा बलात्कार नहीं माना जाएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि शादी करने की कोई इच्छा नहीं थी।
2022 की शुरुआत में एक महिला ने अपने लिव-इन पार्टनर पर बलात्कार का आरोप लगाया। उसने कहा कि 2006 में वह जबरन उसके घर में घुस आया और उसके साथ यौन संबंध बनाए। फिर शादी का झांसा देकर उसने 16 साल तक उसका शोषण किया। इसके बाद उसने दूसरी महिला से शादी कर ली।
न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति. जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि अगर कोई महिला इतने लंबे समय तक रिलेशनशिप में रहती है तो इसे धमकी या जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता। यह मामला बलात्कार का नहीं बल्कि टूटे हुए लिव-इन रिलेशनशिप का है। अदालत ने यह पूछते हुए मामले का समापन किया कि एक शिक्षित और आत्मनिर्भर महिला इतने वर्षों तक खतरे में कैसे रह सकती है?
पिछला मामला क्या था?
इसी तरह के एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने नवंबर 2024 में माना था कि शादी का विच्छेद या वादा तोडऩा आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आता है। हालाँकि ऐसा वादा तोडऩे से व्यक्ति को भावनात्मक कष्ट हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो इसके लिए किसी अन्य को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायाधीश पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति. उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया था।
इसमें आरोपी कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी को अपनी प्रेमिका को धमकाने और उसे आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया गया। उच्च न्यायालय ने उन्हें 5 साल की जेल और 25,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को आपराधिक मामले के बजाय ब्रेकअप केस माना था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट से पहले ही ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था।